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सदियों से आज तक नहीं ठंडी हुई इस शमशान घाट की चिताएं, देवी के श्राप के कारण 24 घंटे जलती हैं लाशें

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बनारस के 84 घाटों में से सबसे ज्यादा मशहूर है ये घाट क्योंकि यहां चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती है इसके चर्चे दूर दूर तक है। गंगा नदी के तट पर स्थित है यह मणिकर्णिका घाट। विदेशो से लोग इस घाट को देखने के लिए आते है। इस घाट से जुड़ी बहुत सी प्रचीन कथाएं भी है। मणिकर्णिका घाट में 24 घंटे चिताये जलती रहती है। एक चिता के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी ये सिलसिला निरंतर ऐसे ही चलता रहता है।

इसलिए मणिकर्णिका घाट को महा श्मशान के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर शिवजी और मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसका निर्माण मगध के राजा ने करवाया था।

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जनश्रुतियों के अनुसार भगवान विष्णु ने भी हजारों वर्ष तक इसी घाट पर भगवान शिव की आराधना की थी। विष्णुजी ने शिवजी से वरदान मांगा कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी को नष्ट न किया जाए। भगवान शिव और माता पार्वती विष्णुजी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर यहां आए थे। तभी से मान्यता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वर्षों से नहीं बुझी चिताओं की आग

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काशी के मणिकर्णिका घाट के बारे में मान्यता है कि यहां चौबीसो घंटे चिताएं जलती रहती हैं। दुनिया इधर से उधर हो जाए, लेकिन यहां चिताओं की अग्नि तबसे जल रही है, जब शंकर भगवान की पत्नी माता पार्वती ने श्राप दिया और कहा कि यहां की आग कभी नहीं बुझेगी। इस स्थान को लेकर कई कहानियां भी हैं।

दुनिया का सबसे अलग एहसास

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वहां की पतली-पतली गलियों से होकर घाट तक पहुंचा जाता है। वहां पहुंचने पर दूर से ही धुआं दिखाई देने लगता है। लोग अंतिम संस्कार के लिए यहां आते हैं यहां इतनी भीड़–भाड़ होती है कि कदम रखने तक की जगह नहीं होती। घाट तक पहुंचने के लिए छोटी छोटी गलियों से होकर जाना होता है। घाट पर जगह-जगह लोग अपना गुट बनाकर बैठे रहते हैं।

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गलियों में एक के बाद एक हजारों दुकानें होती हैं जिसमें कोई समोसा, लौंगलत्ता, कचौड़ी और जलेबी बेच रहा था। वहां दही, लस्सी और पनीर की भी कई दुकानें थीं। लेकिन सबसे अधिक दुकानें अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों की थी।

कुंड स्नान के बाद होती है पंचकोषी यात्रा

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रात के दस–बारह बजे भी समय मणिकर्णिका घाट का माहौल रात जैसा नहीं लगता। घाट के पास की पान की दुकान भी थी जहां नमकीन का पैकेट और अन्य सामाग्री भी बिक रही थी। दुकान का नाम ‘बलराम जनरल स्टोर’ था वहां बैठे व्यक्ति ने बताया कि साल में एक बार शिवरात्रि के मौके पर बनारस में पंचकोषी यात्रा होती है।

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जिसकी शुरुआत मणिकर्णिका कुंड से स्नान के बाद ही होती है। बनारस के पांच कोश मंदिर हैं। पहला मणिकर्णिका घाट, दूसरा कर्दमेशवा मंदिर, तीसरा रामेश्वर मंदिर, चौथा द्रौपदी कुंड शिवपुरी और पांचवा कुपुलधारा तुलाओ का लिथोग्राफ है।

क्यों वर्षों से नहीं बुझी चिताओं की आग?

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इतिहास से जुड़ी ढेर सारी जानकारियां प्राप्त होने के बाद अब तक यह पता नहीं चला कि आखिर यहां वर्षों से आग क्यों नहीं बुझी हैं और इसके पीछे की कहानी क्या है? तभी एक व्यक्ति ने बनारसी अंदाज में कहा कि ‘यही एक स्वच्छ जगह है भईया, एही जगह पर लोगन के मुक्ति मिलेला।’ उन्होंने कहा कि मणिकर्णिका का ऐसा श्राप है कि यहां 24 घंटे आग जलती रहती हैं।

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एक बार पार्वती जी स्नान कर रही थी। उनके कान की बाली कुंड में गिर गई, जिसमें मणि लगी थी। जिसे ढूंढने के लिए काफी जद्दोजहद किया गया। लेकिन उनकी बाली नहीं मिली, तब माता पार्वती को इतना क्रोध आ जाता है और उन्होंने ये श्राप दे दिया कि मेरी मणि नहीं मिली, ये स्थान हमेशा जलता रहेगा।

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उन्होंने यह भी बताया की यही वजह है कि इस स्थान का नाम मणिकर्णिका रखा गया। लोग अपनों का अंतिम संस्कार करने यहां आते हैं। मणिकर्णिका के इतिहास के बारे में जानने के बाद बीते वर्षों में यहां क्या-क्या बदलाव हुआ है यह भी जानना जरूरी है।

कॉरिडोर निर्माण के बाद बदल गई मणिकर्णिका की तस्वीर

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घाट पर मौजूद बाबू लाल नामक चाय वाले ने बताया कि उनका जन्म यहीं हुआ है तीन पीढ़ी से वे लोग यहीं रह रहे हैं। बाबू लाल ने बताया कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के बाद से मणिकर्णिका की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल गई है।

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सुविधाओं के नाम पर पहले यहां कुछ भी नहीं था सिर्फ एक घाट था जिसके किनारे लाशें जलाई जाती थी। लेकिन बीते कुछ वर्षों में यहां इतना निर्माण हुआ कि काम तो चल ही रहा है। बाबू लाल ने बताया कि काम पूरा होने के बाद मणिकर्णिका घाट पूरी तरह से चमक जाएगा।

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