आधार नंबर की तर्ज पर सभी भूस्वामियों को उनकी भूमि का यूनिक आइडी नंबर दिया जाएगा, जो सभी बैंकों व अन्य सरकारी संस्थाओं के लिए भी आनलाइन उपलब्ध होगा।
इससे जमीन के एक ही टुकड़े का कई लोगों के नाम बैनामा कर देने या उसी जमीन पर कई बैंकों से लोन लेना आसान नहीं होगा।
पिछले हफ्ते केंद्रीय भूसंसाधन मंत्रलय के राष्ट्रीय सम्मेलन में सभी राज्यों के राजस्व मंत्रियों की उपस्थिति में भूमि दस्तावेज को पूर्णत: पारदर्शी व त्रुटिहीन बनाने पर विचार किया गया। उसमें जमीन के यूनिक नंबर की व्यवस्था का पुरजोर समर्थन किया गया।
जमीनों के लिए विशिष्ट भूखंड पहचान नंबर जारी होने के बाद किसी तरह के विवाद की गुंजाइश नहीं रहेगी। भूखंड के लिए जारी पहचान नंबर लैटीट्यूड और लांगीट्यूड के आधार पर तैयार किया जाएगा। पहले गांव को यूनिट मानकर सभी तरह की रजिस्ट्री में उसे बार-बार दोहराया जाता था।
पहले चौहद्दी के अनुसार घर का रिकार्ड तैयार किया जाता था, जिस पर कई बार विवाद होता रहा है। भूखंड पहचान नंबर से इस तरह की गड़बड़ियों का रास्ता बंद होगा और गांवों में जमीन को लेकर होने वाले मुकदमों में कमी आएगी।
इस संबंध में जागरण से बातचीत में केंद्रीय भूमि संसाधन व ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि भूसंसाधन विभाग में डिजिटल टेक्नोलाजी लागू होने के बाद पारदर्शिता आई है। विशेष पहचान नंबर मिल जाने से अचल संपत्ति और जमीनों को लेकर होने वाली धोखाधड़ी कम होगी और बेनामी लेनदेन पर रोक लगेगी।
भूमि दस्तावेजों के कंप्यूटरीकरण के मामले में 94 फीसद कार्य पूरा कर लिया गया है। देश के कुल 5,220 रजिस्ट्री कार्यालयों में से 4,883 को आनलाइन भी कर दिया गया है। भूमि संसाधन मंत्रलय के आंकड़ों के मुताबिक, देश के कुल 6.56 गांवों में से 6.08 लाख गांवों के भूमि रिकार्ड को डिजिटल कर वेब पोर्टल पर डाल दिया गया है।
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बताया कि पहले अपनी जमीन का ब्योरा प्राप्त करने के लिए राजस्व आफिस के कई चक्कर लगाने पड़ते थे। दस्तावेज की कापी प्राप्त करने के लिए अनावश्यक पैसे भी खर्च करने पड़ते थे। पुराने रिकार्ड निकालना और भी मुश्किल होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
खासतौर पर शहरों में रहने वाले ऐसे लोगों को काफी सहूलियत होगी, जिनकी जमीन गांव में है। उनके लिए रिकार्ड देखना बड़ी चुनौती थी। आनलाइन रिकार्डस को आसानी से प्रिंट भी किया जा सकता है।