हरियाणा में अब छह लाख रुपये से अधिक सालाना कमाई वाले पिछड़ा वर्ग के परिवारों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। प्रथम और द्वितीय श्रेणी अधिकारियों के परिजन भी आरक्षण का लाभ नहीं उठा सकेंगे।
इसी तरह सेना में मेजर या इससे ऊपर के अधिकारियों और वायुसेना व नौसेना में समकक्ष स्तर के अधिकारियों के आश्रितों को आरक्षण से बाहर कर दिया गया है।
निर्धारित सीमा से अधिक जमीन और पिछले तीन साल में एक करोड़ रुपये से अधिक संपदा वाले लोगाें को भी आरक्षण नहीं दिया जाएगा।अनुसूचित जातियां एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के प्रधान सचिव विनित गर्ग ने क्रीमीलेयर को लेकर नई अधिसूचना जारी कर दी है।
राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति, संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों, मुख्य निर्वाचन आयुक्त, नियंत्रक महालेखा परीक्षक सहित अन्य संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के साथ ही सांसद और विधायकों के परिजनों को भी आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने बीती 24 अगस्त को प्रदेश सरकार द्वारा क्रीमीलेयर को लेकर 17 अगस्त 2016 और 28 अगस्त 2018 को जारी की गई अधिसूचनाओं पर ऐतराज जताते हुए इन्हें रद कर दिया था।
साथ ही इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और हरियाणा पिछड़ा वर्ग आरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार तीन महीने के अंदर नई अधिसूचना लाने का निर्देश दिया था। इसके बाद प्रदेश सरकार ने नए सिरे से क्रीमीलेयर तय की है।
केंद्र सरकार ने आठ लाख रुपये से कम वार्षिक आय वालों को आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की श्रेणी में रखा है, जबकि हरियाणा में यह सीमा छह लाख रुपये रहेगी। इसी तरह केंद्र सरकार ने सीधे भर्ती प्रथम श्रेणी के अधिकारी या 40 वर्ष की आयु से पहले पदोन्नत अधिकारियों को ही क्रीमीलेयर में रखा है।
हरियाणा कांग्रेस की प्रधान कुमारी सैलजा ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि पिछड़े लोगों को आरक्षण से वंचित रखने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। क्रीमिलेयर को लेकर जारी की गई नई अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट को भ्रमित करने वाली और असंवैधानिक है।
यह अधिसूचना हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद की गई अधिसूचना का ही प्रतिरूप है जो सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना है।
उन्होंने कहा कि सभी स्रोतों से वार्षिक आय छह लाख रुपये निर्धारित करने से चतुर्थ श्रेणी, डी श्रेणी के सैनिकों, किसानों और कौशल श्रमिकों के बच्चों के आरक्षण का अधिकार छीन लिया गया है।
यह न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दिशा-निर्देशों पर केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों से भी अलग है। सामाजिक रूप से पिछड़े कर्मचारियों की सैलरी और किसान की कृषि आय को वार्षिक आय में शामिल नहीं किया जा सकता।
कुमारी सैलजा ने कहा कि हरियाणा सरकार वर्ष 1995 से 2016 तक केंद्र सरकार के क्रीमीलेयर मानदंड का पालन कर रही थी। मौजूदा सरकार ने वर्ष 2016 में पिछड़े वर्गों को विभाजित करने और पिछड़े वर्गों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने के लिए नए क्रीमीलेयर मानदंड लागू कर दिए जो पिछड़ा वर्ग के हकों को छीनने का प्रयास है। इसे सहन नहीं किया जा सकता।
इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित आदेशों और केंद्र द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार ही हरियाणा के पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ दिया जाए।