दिल्ली एनसीआर का पोलुशन लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में लोगो को परेशानी हो रही है साथ उन्हें सास लेने में भी दिक्कत होती है। इस कदर फैल गया है की सरकार ने भी स्कूल और कार्यालय कुछ दिनों के बंद करने के निर्देश दिए है सरकार और प्रशासन भी अलग अलग तरीके से प्रदूषण पर काबू पाने में लगे हुए है।
लेकिन लोगो को अभी भी सुध नहीं है वो लगातार वाहनों से प्रदूषण फैला रहे है। ऐसे में वाहनों से निकलने वाला धुँआ शहर में ज़हर घोल रहा है।
लेकिन लोग नकली स्लिप बनवा के अपने वाहनों को सडको पर दौड़ा रहे है। और साथ ही प्रदूषण जांच केंद्र चलाने वाले संचालक सौ रुपये में प्रदूषण की स्लिप बना देते हैं। इसके बाद आपके वाहन से कितना भी प्रदूषण निकल रहा हो पुलिस चालान नहीं कर पाती।
दरअसल पुलिस वाहनों के दस्तावेज की जांच के दौरान केवल प्रदूषण सर्टिफिकेट की वैधता ही जांचती है। यदि चालक के पास सर्टिफिकेट है तो उसका चालान नहीं काटा जाता।
सेक्टर-16 में प्रदूषण जांच केंद्र चला रहे सुभाष ने बताया कि सरकार ने अत्याधुनिक तरीके अपना लिए हैं। इसके तहत वाहन की जांच के दौरान उसके साइलेंसर में एक स्टिक डाली जाती है। वाहन को कुछ देर तक स्टार्ट किया जाता है। इससे साइलेंसर में डाली गई स्टिक धुएं और प्रदूषण के स्तर को देखती है।
इसके बाद वाहन का फोटो खींचा जाता है जिसमें उसका नंबर दिखाई दे रहा हो। जांच में यदि गाड़ी ज्यादा धुआं दे रही है तो उसका सर्टिफिकेट नहीं बनाया जाता। इसके साथ ही इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि गाड़ी का कितने दिन का सर्टिफिकेट जारी किया जा सकता है। इन दिनों एक साल का सर्टिफिकेट बनाया जाता है। दुपहिया वाहन का 80 रुपये और गाड़ी का 100 रुपये रेट है।
सूत्रों के मुताबित पैसे कमाने के लिए कुछ संचालक बिना सही से जाँच किए भी सर्टिफिकेट बना देते है। इसके लिए वे 50 या 100 रुपए ज्यादा लेते है। वाहन की जांच के दौरान यदि गाड़ी ज्यादा धुआं दे रही होती है तो गाड़ी के नंबर के साथ फोटो खींच लिया जाता है। इसके बाद गाड़ी को बिना रेस दिए हल्के से स्टार्ट करने के बाद स्टिक को थोड़ा सा ही अंदर डाला जाता है।
इससे स्टिक काफी कम धुएं को पकड़ पाती है। यदि गाड़ी काफी ज्यादा धुआं भी दे रही होती है तो दूसरी गाड़ी के साइलेंसर में स्टिक डालकर प्रिंट निकाल दिया जाता है। कई लोग बिलकुल फर्जीवाड़ा भी कर देते हैं। वे बिना किसी जांच के ही प्रिंट निकाल देते हैं।
डीसीपी ट्रैफिक का कहना है कि वाहन की जांच के दौरान पुलिस केवल सर्टिफिकेट की वैधता की जांच करती है। पुलिस के पास ऐसा कोई यंत्र नहीं होता जिससे वाहन के प्रदूषण की मौके पर ही जांच के बाद उसका चालान किया जा सके। प्रदूषण विभाग को इसके लिए अपने स्तर पर वाहनों की जांच करनी चाहिए।
वे उच्च अधिकारियों के सामने इस समस्या को रखेंगे कि पुलिस के पास प्रदूषण फैला रहे वाहन की जांच के लिए अलग से मशीन उपलब्ध कराई जाए। इसके साथ ही प्रदूषण विभाग से भी इस बारे में बात की जाएगी। प्रदूषण स्लिप नही होने पर 10 हजार रुपये का चालान काटा जाता है।