सोमवार 13 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया। करीब 250 साल पहले इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। रानी अहिल्याबाई के योगदान का शिलापट और उनकी एक मूर्ति भी ‘श्रीकाशी विश्वनाथ धाम’ के प्रांगण में लगाई जाएगी। लेकिन आप सब यही सोच रहे होंगे की कौन थी रानी अहिल्याबाई। इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको इस मंदिर का इतिहास और रानी अहिल्याबाई होल्कर के बारे में बताएंगे। इतिहास के कुछ पन्ने आपके सामने रखेंगे।
मशहूर इतिहासकार डॉक्टर विश्वंभर नाथ पांडेय की किताब ‘भारतीय संस्कृति, मुगल विरासत: औरंगज़ेब के फ़रमान।’ जिसके पेज नंबर 119 और 120 में पट्टाभिसीतारमैया की किताब ‘फ़ेदर्स एंड स्टोन्स’ का रेफेरेंस देते हुए विश्वंभर नाथ पांडेय विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने के बारे में बताते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर शिव और पार्वती का आदि स्थान माना जाता है और यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। महाभारत और उपनिषदों में भी इसके बारे में जानकारी मिलती है। लेकिन बहुत कम इतिहासकार ही यह मानते हैं कि यह काशी वाला ही विश्वनाथ मंदिर है। यह भी कहा जाता है कि 11वीं सदी के अंत में जिस विश्वनाथ मंदिर को मोहम्मद गौरी ने लूटा और तुड़वाया था वो यही काशी विश्वनाथ मंदिर था।
इतिहासकारों की मानें तो गौरी के कराए इस विध्वंस के बाद मंदिर को दोबारा बनवाया गया। लेकिन एक बार फिर सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान ने तोड़ दिया। इसके बाद साल 1585 में अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया।
राजा टोडरमल ने पंडित नारायण भट्ट को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद भव्य मंदिर बनाया गया और ज्यादातर इतिहासकार भी इस बात पर पूरी तरह से सहमत हैं। कहा जाता है कि ये दौर अकबर के दीन-ए-इलाही धर्म का था। जिसके अनुसार किसी भी धर्म की पूजा पद्धतियों पर कोई विशेष रोक नहीं थी और न ही धार्मिक स्थलों के निर्माण पर।
बता दें कि इस मंदिर के निर्माण के आदेश खुद अकबर ने दिए थे। लेकिन कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि राजा टोडरमल की अकबर के दरबार में मजबूत स्थिति थी। इतनी कि उन्हें मंदिर निर्माण के लिए अकबर की अनुमति तक लेने की जरूरत नहीं थी।
औरंगजेब ने तुड़वाया था विश्वनाथ मंदिर
लेकिन इसके बाद आया साल 1669 जिसमें मुगलों के आखिरी वंशज औरंगजेब का शासन चल रहा था। औरंगजेब अकबर के चलाए दीन-ए-इलाही के खिलाफ़ था। उस दौर में औरंगजेब के आदेश पर कई मंदिर तोड़े गए। इतिहासकार एल.पी. शर्मा की किताब-‘मध्यकालीन भारत’ के अनुसार-
‘1669 में सभी सूबेदारों और मुसाहिबों को हिंदू मंदिर और पाठशालाओं को तोड़ देने की आज्ञा दी गई। इसके लिए एक अलग विभाग भी खोला गया। ये तो संभव नहीं था कि हिंदुओं की सभी पाठशालाएं और मंदिर तोड़ दिए जाते, लेकिन बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवदेव मंदिर, पटना का सोमनाथ मंदिर और प्रायः सभी बड़े मंदिर, ख़ास तौर पर उत्तर भारत के मंदिर इसी समय तोड़े गए।’
काशी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद, विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी या औरंगजेब ने जब मंदिर तुड़वाया, तब कुछ साल बाद उसके अवशेषों पर बनी या अकबर के वक़्त जब दीन-ए-इलाही मत के अनुसार टोडरमल ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, उसके साथ ही बनी, इस बारे में इतिहासकारों में बहुत मतभेद हैं।
विश्वम्भर नाथ पाण्डेय अपनी किताब में लिखते हैं कि
‘विश्वनाथ मंदिर तोड़े जाने के औरंगजेब के आदेश का तत्काल पालन हुआ, लेकिन जब यह बात कच्छ की रानी और आमेर के कछवाहा शासक की पत्नी ने सुनी तो उन्होंने उसके पास सन्देश पहुंचाया कि इसमें मंदिर का क्या दोष है, दोषी तो वहां के पंडे है।’
विश्वम्भर आगे लिखते हैं कि
‘रानी ने मंदिर को दोबारा बनवाने हो इच्छा प्रकट की लेकिन औरंगजेब के लिए अपने धार्मिक विश्वास के कारण, फिर से नया मंदिर बनवाना संभव नहीं था। इसलिए उसने मंदिर की जगह मस्जिद खड़ी करके रानी की इच्छा पूरी की।’
कौन थी रानी अहिल्याबाई होल्कर
इसके बाद साल 1777 में इंदौर के होल्कर राजघराने की रानी अहिल्या बाई होल्कर विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का प्रण लेती हैं। और अगले 3 साल के अंदर यह मंदिर फिर से खड़ा हुआ। यूं तो रानी अहिल्याबाई का शासन इंदौर जैसे एक छोटे से राज्य पर ही था लेकिन उन्होंने देश के कई इलाकों में डेवलपमेंट के काम करवाए।
उस दौर में उन्होंने इंदौर से लगाकर देश के दूसरे इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा जितना काम करवाया, उसे डेवलपमेंट का मॉडल तक माना जाने लगा था। उन्होंने कई तालाब, सडकें, नदियों के किनारे घाट और मंदिरों के पुनर्निर्माण का करवाया था। अहिल्याबाई एक सफल शासक और कूटनीतिज्ञ थीं। लेकिन इतिहासकारों की मानें तो उनकी धार्मिक प्रवृत्ति और मंदिरों के प्रति उनके श्रद्धा भाव के चलते उन्हें संत भी कहा जाने लगा था।
पति से लेकर ससुर ने की थी पुनर्निर्माण की कोशिश
होल्कर राजघराने के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर की पत्नी थीं अहिल्याबाई। सन् 1733 में अहिल्याबाई की शादी खांडेराव से हुई थी। लेकिन 1754, कुम्भेर के युद्ध में खांडेराव की मृत्यु हो गई। 12 साल बाद मल्हारराव होल्कर भी नहीं रहे। इतिहासकारों के अनुसार मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होल्कर ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर कई कोशिशें की थीं।
इनकी कोशिशों को देखते हुए ही साल 1770 में दिल्ली में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय यानी अली गौहर ने मंदिर विध्वंस की क्षतिपूर्ति वसूलने का आदेश भी जारी कर दिया था। लेकिन तब तक काशी पर अंग्रेजों का राज हो गया और मंदिर का काम रुक गया था। ससुर मल्हारराव भी गुजर चुके थे।
इसके दो साल बाद अहिल्याबाई के इकलौते बेटे मालेराव का भी 21 साल की उम्र में देहांत हो गया था। अब इंदौर का शासन पूरी तरह से अहिल्याबाई के हाथों में था। साल 1777-80 के बीच रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर निर्माण की कवायद दोबारा शुरू की और इसमें सफल भी हुईं। अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह कों फिर से बनवाया और शास्त्रसम्मत तरीके से मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा भी करवाई।
शिवरात्रि पर लिया था प्रण
काशी के बारे में जानकारी रखने वाले प्रोफेसर राना वीपी सिंह कहते हैं कि ‘रानी का योगदान अतुलनीय है। रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र-सम्मत तरीके से शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। एकादश रूद्र के प्रतीक स्वरुप 11 शास्त्रीय आचार्यों द्वारा प्राण-प्रतिष्ठा के लिए पूजा की गई। रानी ने शिवरात्रि को इसका संकल्प किया और शिवरात्रि पर ही मंदिर खोला गया। इससे रानी के विजन और सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा का पता चलता है। काशी से अगर विश्वनाथ को अलग करें तो कुछ नहीं बचेगा। मंदिर जब क्षतिग्रस्त किया गया तब रानी अहिल्याबाई मानो अन्नपूर्णा के आशीर्वाद स्वरुप वहां पहुंचीं और मंदिर का पुनर्निर्माण किया।’
काशी में मंदिर के पुनर्निर्माण के अलावा रानी अहिल्याबाई ने यहां कई घाट भी बनवाए। उनके नाम से यहां अभी भी घाट है। अहिल्याबाई के बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर के शिखर पर सोने का छत्र बनवाया। कहा जाता है ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने भी मुख्य मंदिर का मंडप बनवाया था।
हालांकि, काशी विश्वनाथ मंदिर और इससे सटी हुई ज्ञानवापी मस्जिद (जिसे आज आलमगीर मस्जिद भी कहते हैं) दोनों धार्मिक स्थलों के बीच विवाद भी रहा। लेकिन कभी कोई बड़ा झगडा नहीं हुआ सिवाय बाहर होने वाली नमाज़ पर विवाद के।
अब का काशी विश्वनाथ कॉरिडोर
काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर जो कि पहले 5000 वर्ग फीट से भी कम जगह में था। अब यह 5 लाख वर्ग फीट से भी ज्यादा में बनाया गया है। पूरे परिसर में 27 मंदिरों की श्रृंखला है और आने वाले श्रद्धालुओं के लिए 3 सुविधा केंद्र, एक टूरिस्ट फैलीसिटेशन काउंटर, वाराणसी गैलरी, सिटी म्यूजियम, वैदिक सेंटर, मुमुक्षु भवन, गेस्ट हाउस और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाया गया है।