भारतीय सेना ने चीन को सबक सिखाने के लिए पूरा बंदोबस्त कर लिया है। शक्तिशाली टी-90 भीष्म टैंक हवाई जहाज के जरिए लद्दाख पहुंच गया है। टी-90 भीष्म टैंक की तैनाती कर भारत ने एक तरह से चीन को कड़ा संदेश दे दिया है कि अगर कुछ हरकत की, तो करारा जवाब मिलेगा। टी-72 टैंकों का एक बेड़ा पहले से लद्दाख में तैनात है। हवा में दुश्मन के जहाजों को मार गिराने में समर्थ अत्याधुनिक एंटी एयरक्राफ्ट गन और सैनिकों का एक विशेष दस्ता भी पहुंच चुका है। लद्दाख और कश्मीर में बुधवार को भी युद्धक विमानों ने उड़ान भरकर ऑपरेशनल तैयारियों को धार भी दी।
सेना के सूत्रों ने बताया कि चंडीगढ़, श्रीनगर समेत देश के विभिन्न हिस्सों से वायुसेना सी-17 ग्लोब मास्टर और रूस निर्मित आइएल-76 जहाजों के जरिए टैंक, एंटी एयर क्राफ्टगन समेत कई भारी हथियारों के अलावा सैनिकों के विशेष दस्तों को लद्दाख पहुंचा रही है।
सैन्य सूत्रों ने बताया कि इस समय सेना की तीन आर्म्ड रेजिमेंट लद्दाख में हैं। एक आर्म्ड रेजिमेंट का दस्ता पहले से मौजूद था। तीन आर्म्ड रेजिमेंट की तैनाती से हालात का अनुमान लगाया जा सकता है। हालाकिं, लद्दाख का अधिकांश इलाका पहाड़ी और दुर्गम है। चुशूल और दमचोक जैसे कुछ समतल इलाके भी हैं, जिनमें टैंक बहुत कारगर साबित होंगे। लद्दाख में बीते एक सप्ताह के दौरान टी-90 टैंक भी पहुंचाए गए हैं। इन्हें चुशूल और गलवन सेक्टर में तैनात कर दिया गया है।
दुनिया के 8वे अचूक टैंक में शामिल है भीष्म
टी-90 भीष्म टैंक को दुनिया के सबसे अचूक टैंक में से एक माना जाता है। चीन ने एलएसी के पार अपने मुख्य बेस पर बख्तरबंद गाड़ियों के साथ टी-95 टैंक तैनात किए हैं, जो किसी तरह से भीष्म से बेहतर नहीं हैं। टी-90 टैंक शुरू में रूस से ही बनकर आए थे। बाद में इनका उन्नत रूप तैयार किया गया।
जानिए टी-90 टैंक भीष्म की खासियत
1.एक मिनट में आठ गोले दागने में समर्थ यह टैंक जैविक व रासायनिक हथियारों से निपट सकता है।
- एक हजार हार्स पावर इंजन की क्षमता वाला यह टैंक दिन और रात में लड़ सकता है।
- इसका आर्म्ड प्रोटेक्शन दुनिया में बेहतरीन माना जाता है, जो मिसाइल हमला रोक सकता है।
- दुनिया के सबसे हल्के टैंकों में शुमार, वजन सिर्फ 48 टन। 18 हजार फुट की ऊंचाई पर भी टैंक संचालित कर चुकी सेना
- छह किमी की दूरी तक मिसाइल भी लांच कर सकता है। यह 72 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ सकता है।
लद्दाख में समुद्रतल से करीब 12 हजार से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर ही टैंक इस्तेमाल किए जाने की संभावना है, लेकिन भारतीय सेना पिछले कुछ वर्षो में युद्धाभ्यास के दौरान 18 हजार फुट की ऊंचाई पर भी टैंक सफलतापूर्वक संचालित कर चुकी हैं। लद्दाख में टैंक रेजिमेंट (जिसे आर्म्ड रेजिमेंट भी कहते हैं) की बढ़ती ताकत और मौजूदगी चीन के हौसले पस्त करने वाली है।
पहली बार हवाई जहाज से पहुंचाए गए टैंक
वर्ष 1962 के बाद यह पहला अवसर है जब लद्दाख में टैंक व अन्य भारी साजो सामान को हवाई जहाज के जरिए पहुंचाया गया है। वायुसेना ने 1962 के युद्ध के दौरान 30 लांसर के छह एएमएक्स हल्के टैंक पहुंचाए थे। उन्हें भी चुशूल में ही तैनात किया गया था। इसके बाद 1990 के दशक में आइएल-76 विमान के जरिए टी-72 टैंक और बीएमपी-1/2 मैकेनाइज्ड इनफेंटरी कंबैट व्हिकल पहुंचाए गए थे।
भारतीय सेनाएं भी चीन की दोहरी चालबाजी से सतर्क
तस्वीरों से यह भी जाहिर हो रहा है कि डेपसांग के निकट एलएसी पर चीन अपने इलाके में सैनिकों का जमावड़ा कर रहा है। जाहिर तौर पर भारत के लिए यह चिंता की बात है क्योंकि डेपसांग के इलाके में अतिक्रमण का नया मोर्चा खोल भारत के दौलत बेग ओल्डी के बेहद अहम रणनीतिक रोड के लिए चीन चुनौती पेश कर सकता है। दौलत बेग ओल्डी के निकट के पैट्रोलिंग प्वाइंट पर बाधा डालने की चीनी कोशिश के मद्देनजर भारतीय सेना भी सतर्क है। खास बात यह है कि इस सड़क के जरिये ही कराकोरम हाइवे जुड़ता है |
भारतीय सेनाएं भी चीन की दोहरी चालबाजी से सतर्क हैं। इसीलिए सैन्य व कूटनीतिक वार्ता में सकारात्मक प्रगति के बाद भी सेना ने लद्दाख समेत चीन से लगी सीमाओं के अग्रिम मोर्चे पर न केवल सैनिकों की तैनाती बढ़ाई है बल्कि सेना हाई अलर्ट पर है। सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवाने ने खुद एलएसी समेत अग्रिम मोर्चे पर सैन्य रणनीति की समीक्षा के लिए मंगलवार और बुधवार को वहां का दौरा किया। वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने गलवन घाटी की घटना के एक दिन बाद लद्दाख जाकर एयरफोर्स के अग्रिम बेस पर स्थिति की समीक्षा की थी। सेना और वायुसेना ही नहीं नौसेना भी हिंद महासागर में चीन के ऐसे कपट की आशंका को लेकर बेहद सतर्क है।
Written by- Prashant K Sonni