भारत में कई सारे ऐसे मंदिर हैं जो बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हैं जिनमें लोग घूमने के लिए भी जाते हैं और वहां पर बहुत भीड़ भाड़ भी होती है। लोगों के लिए वहां जाना एक चुनौती मुनाफिक होता है। वहां दर्शन करना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो जाता है उन्हें मंदिरों में से एक है दक्षिण के तिरुपति बालाजी। जिनका नाम पूरे देश में प्रसिद्ध है। मगर उत्तर भारत के लोगों के लिए वहां जाना किसी चुनौती से कम नहीं है। दूर होने की वजह से लोग वहां नहीं जा पाते है।
मगर आपको बता दें अब उत्तर भारत के लोगों के लिए भी दक्षिण भारत के तिरुपति बालाजी जैसा एक हुबहू मंदिर हरियाणा के हिसार में देखने को मिल सकता है।
आपको बता दें हरियाणा के हिसार में स्थित इस मंदिर में 42 फुट ऊंचे खंबे का निर्माण किया जा रहा है। जिससे इस मंदिर को एक नई पहचान मिल गई है। इस मंदिर को देखने के साथ-साथ लोग इस 42 फुट ऊंचे खंभे को देखने के लिए भी आया करेंगे।
मंदिर के सेवादारी राजेश शुक्ला ने इस खंभे के बारे में पूरी जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि इस खंभे को बनाने के लिए सागवान की लकड़ी से दो बड़े पेड़ लिए गए और काटकर उन्हें एक साथ जोड़ा गया। इसको बनाने के लिए जयपुर से कारीगर आए थे।
सबसे पहले इस पर तांबे के 2 फुट के कड़े बनाए गए और नीचे कड़े बनाने के बाद इस पर सोने की परत चढ़ाई गई। इस खंभे का नाम गरूण स्तंभ है। सेवादार ने आगे बताया कि यह तिरुपति मंदिर हुबहू दक्षिण के तिरुपति बालाजी मंदिर जैसा ही है। इसको पूरा उसी मंदिर के जैसा तैयार किया गया है। इस मंदिर की सजावट तिरुपति के कारीगरों द्वारा ही की गई है। यह ढाई एकड़ में फैला हुआ है।
राजेश शुक्ला ने खंबे में लगी लागत और निर्माण में समय के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस खंभे को बनाने के लिए लगभग 20 से 30 लाख रुपए का खर्चा हुआ है इसके लिए कई जगहों से चंदा आया है और इसको बनाने के लिए लगभग 1 वर्ष का समय लगा है।
अब आप सोच रहे होंगे कि इस मंदिर को बनाने का विचार आखिर किस के मन में आया और क्यों आया। जबकि यह मंदिर तिरुपति बालाजी दक्षिण में पहले से ही स्थित है। तो फिर उत्तर भारत में इस मंदिर को बनवाने के लिए किसने सोचा और इसकी जरूरत क्या पड़ी।
आपको बता दें यह मंदिर वृंदावन के अखिल भारतीय श्री वैकुंठनाथ सेवा धर्म ट्रस्ट की ओर से बनाया जा रहा है। यह मंदिर सिरसा रोड पर चिकन वास टोल प्लाजा के पास स्थित है। इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि यह भारत में दक्षिण भारतीय शैली का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है।
इस मंदिर के एक दूसरे सेवाधार रामनिवास अग्रवाल ने बताया ने बताया की यह मंदिर बनाने का ख्याल उनके गुरु के मन में आया। उनका कहना है कि उनके गुरु देव नारायण आचार्य महाराज वृंदावन में रहते हैं। वह हिसार में 108 भागवत कथा के लिए आते हैं।
एक दिन उन्हें सपना आया कि तिरुपति बालाजी जैसा मंदिर उत्तर भारत में भी बनाना चाहिए क्योंकि यहां के सब लोग वहां नहीं पहुंच पाते। इसके बाद रामनिवास अग्रवाल ने एक ऐसा ट्रस्ट बनाया, जिसमें भारत के अधिकतर राज्यों के लोग इस ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं और सभी के संकल्प लिया कि वह इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा करवाएंगे।