युद्ध और कुश्ती में पाकिस्तानियों के दांत खटे कर चुका पहलवान, सम्मान के लिए 10 साल से भटक रहा

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भारतीय सेना में बतौर सैनिक भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले और कुश्ती में ‘भारत केसरी’ बने फरीदाबाद वासी पहलवान नेत्रपाल पिछले 10 वर्षों से अपने सम्मान के प्रति के रहे जद्दोजहद।

पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से भारत सरकार द्वारा कुश्ती के क्षेत्र में दिये जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार ‘ध्यानचंद अवार्ड’ पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। उनका कहना है कि भारत सरकार उन्हें नजरअंदाज कर रही है जबकि वे इस अवार्ड के पूरी तरह से हकदार हैं।

युद्ध और कुश्ती में पाकिस्तानियों के दांत खटे कर चुका पहलवान, सम्मान के लिए 10 साल से भटक रहा

इसी मांग को लेकर वे आज पृथला विधानसभा क्षेत्र से विधायक नयनपाल रावत से उनके सेक्टर-15ए स्थित कार्यालय पर मिले। विधायक रावत ने पहलवान नेत्रपाल को भरोसा दिलाया कि वे उनकी इस न्यायोचित मांग से केंद्रीय खेल मंत्रालय को शीघ्र अवगत कराएंगे और उन्हें उम्मीद है कि उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए यह अवार्ड उन्हें अवश्य प्रदान किया जाएगा।

उल्लेखनीय है कि ओल्ड फरीदाबाद की शास्त्री कॉलोनी निवासी बुजुर्ग पहलवान नेत्रपाल थलसेना में कैप्टन के पद से 31 मई 1992 को सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने सेना में रहते हुए देश-विदेश में कुश्ती के अनेक धुरंधरों को जोरदार टक्कर देकर अपनी अलग पहचान बनाई। नेत्रपाल पहलवान 1973 में ‘भारत केसरी’ बने। इससे पहले वे कुश्ती में 1968, 1969, 1970, 1974 और 1975-76 में भी नेशनल चैम्पियन रहे।

युद्ध और कुश्ती में पाकिस्तानियों के दांत खटे कर चुका पहलवान, सम्मान के लिए 10 साल से भटक रहा

उन्होंने 1970 में बैंकॉक में एशियन खेलों में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया था।

1974 में न्यूजीलैंड में ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीतकर राष्ट्र का गौरव बढ़ाया था। साथ ही अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया था। वर्ष 1972 में पंजाब के अमृतसर में ‘रूस्तम-ए-हिन्द’ बने। टोनी पहलवान का कहना है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी भारत सरकार वयोवृद्ध पहलवान नेत्रपाल की अनदेखी कर रही है।

पिछले 10 वर्षों से ‘ध्यानचंद अवार्ड’ के लिए खेल मंत्रालय के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन हर बार उनकी अनदेखी की जा रही है। स्थानीय नेताओं ने भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया है। उनका आरोप है कि उनसे जूनियर खिलाडिय़ों तक को यह अवार्ड दे दिया गया है जबकि नेत्रपाल जैसे जाने-माने पहलवान को वंचित किया जा रहा है।

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वहीं पहलवान नेत्रपाल ने विधायक नयनपाल रावत को सौंपे पत्र के माध्यम से भारत सरकार से मांग की है कि उनकी उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए और पारदर्शी नीति अपनाते हुए इस बार उनका चयन इस अवार्ड के लिए किया जाए ताकि उन जैसे पहलवानों का उत्साह बना रहे और वे नई पीढ़ी को विलुप्त हो रहे खेल कुश्ती की ओर आकर्षित कर सकें।