10 साल में चौथी बार हुआ ऐसा, सितंबर की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया मानसून का आखिरी महीना

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कोरोनावायरस के संक्रमण ने तो हर क्षेत्र में उथल पुथल मचा कर रख दिया है। तभी तो अब मौसम के मिजाज भी बदले बदले नजर आते हैं। कोरोनावायरस का संक्रमण कम होने का नाम ले रहा है ना ही गर्मी।

दिन प्रतिदिन जहां लोग उम्मीद कर रहे हैं कि गर्मी से निजात मिलेगी लेकिन गर्मी है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सितंबर का महीना भी खत्म होने की कगार पर खड़ा है।

10 साल में चौथी बार हुआ ऐसा, सितंबर की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया मानसून का आखिरी महीना

ऐसे में मानसून का आखिरी महीना सितंबर उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। पिछले 10 साल में ऐसा चौथी बार है, जब सितंबर में मॉनसून सबसे कम बरसा है। 1 से 22 सितंबर तक प्रदेश में औसतन 21.9 मिमी. बारिश हुई है

, जो सामान्य से 68% कम है। इस अवधि में 68.9 मिमी. बारिश सामान्य मानी जाती है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अब इस माह में बड़ी बारिश की उम्मीद बहुत कम ही हैं, क्योंकि मानसून की सक्रियता अधिक नहीं है।

23 सितंबर को कहीं-कहीं हल्की बौछारें पड़ सकती हैं। यह सीजन की आखिरी बारिश हो सकती हो सकती है। सितंबर के आखिरी सप्ताह में मानसून हरियाणा से विदाई ले लेगा। भारतीय मौसम विभाग के चंडीगढ़ सेंटर के निदेशक डॉ. सुरेंद्र पाल के अनुसार, सितंबर में कम बारिश हुई है, जबकि पूरे मॉनसून सीजन को देखें तो सामान्य बारिश हुई है।


करीब 90% मानसून बरस चुका है। 1 जून से शुरू हुए मॉनसून सीजन में 22 सितंबर तक 373.1 मिमी. बरसात हुई है, जो सामान्य से 13% कम है। इस अवधि में 428.9 मिमी. बारिश सामान्य मानी जाती है। कुल मिलाकर पिछले 10 सालों में मानसून की बारिश सबसे अच्छी मानी जा रही है।

कम बारिश का कारण


मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि सितंबर में कम बारिश का बड़ा कारण मानसून की सक्रियता कम होना है। उधर मानसून के कारण गर्मी से हाल बेहाल है। सूरज की तपिश के कारण अभी भी लोगों का घर से बाहर निकलना मुहाल हो गया है।