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क्यों मनाया जाता है तुलसी विवाह, जानिए इसके पीछे छिपी मान्यता का सच

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प्राचीन मान्यताओं के अनुसार आज के दिन जो लोग शालिग्राम और तुलसी विवाह कराते है उन्हें कन्यादान के बराबरका फल प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी विवाह के लिए कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी और द्वादशी तिथि सबसे शुभ होती है।

ऐसी मान्यता है की जिस घर में बेटियां नहीं होती हैं। यदि वेदंपत्ति तुलसी विवाह करते है तो उन्हें कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता हैं। तुलसी विवाह का आयोजन बिल्कुल वैसे ही किया जाता है जैसे सामान्य वर – वधु का विवाह किया जाता है।

तुलसी विवाह कथा :-

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प्राचीन कथा के अनुसार जलंधर नाम का एक राक्षस था । वो बहुत ही पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रताधर्म था। इसी कारण वह विजयी हुआ था। जलंधर के उदण्डों से परेशान होकर देवता भगवान विष्णु के पास गए और रक्षा करने की प्रार्थना करी।

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सभी की बात सुनकर भगवान विष्णु ने जलंधर की शक्ति को खत्म करने के लिए देवी वृंदा का पतिव्रत भंग करने का निश्चय किया और जलंधर का रूप धरकर छलसे वृंदा से विवाह कर लिया। विवाह के बाफ जलंधर , देवताओंसे युद्ध में वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही वह मारा गया।

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यह जान वृंदाने क्रोधित होकर जानना चाहा कि उनसे विवाह किसने किया। उसी क्षण भगवान विष्णु प्रकट हुए तब वृंदा ने ही भगवान विष्णु को श्राप दिया की ‘ तुमने छल से मुझसे विवाह किया है , अब तुम भी स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे। ‘ यह कहकर वृंदा भी पति के साथ सती हो गई।

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वृंदा के श्राप से ही प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीता वियोग सहना पड़ा। तब विष्णु ने वृंदा को वचन दिया की तुम्हारे सतीत्व का यह फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा वो परमधाम को प्राप्त होगा तभी से विष्णु जी के एक रूप शालिग्राम के साथ उनका विवाह हुआ।

Written By : Pinki Joshi

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