हम एक ऐसे राजनेता के जीवन के बारे में बात करने वाले हैं जिन्हें हर पक्ष के नेता ने समान सम्मान दिया है। वे मस्तमौला थे, लेकिन सार्वजनिक जीवन में शालीनता भी बनाए रखते थे। लंबे समय तक उनके साथ रहे लालकृष्ण आडवाणी, उनके करीबी सहयोगियों और कुछ लेखकों ने अटलजी से जुड़े दिलचस्प किस्से समय-समय पर साझा किए हैं।
अटलजी ऐसी शख्सियत थे कि चुनाव हारने के बाद फिल्म देखने चले जाते थे। एक बार अमेरिका गए तो लाइन में लगकर डिज्नीलैंड का टिकट लिया और झूलों का लुत्फ उठाने से नहीं चूके। पंडित नेहरू भी अटलजी से प्रभावित थे।
उनकी भाषण शैली से आडवाणी को कॉम्प्लेक्स हुआ करता था। अब आपके साथ अटल बिहारी वाजपेई से जुड़ा एक रोचक किस्सा साझा करते हैं। वह जितने शांत अपने जीवन में थे उतने ही रोचक उनके किस्से रहे हैं। आडवाणी के मुताबिक, दिल्ली में नयाबांस का उपचुनाव था।
उन्होंने कहा कि, हमने बड़ी मेहनत की, लेकिन हम हार गए। हम दोनों खिन्न और दुखी थे। अटलजी ने मुझसे कहा कि चलो, कहीं सिनेमा देख आएं। अजमेरी गेट में हमारा कार्यालय था और पास ही पहाड़गंज में थिएटर। नहीं मालूम था कि कौन-सी फिल्म लगी है।
पहुंचकर देखा तो राज कपूर की फिल्म थी- ‘फिर सुबह होगी’। मैंने अटलजी से कहा, ‘आज हम हारे हैं, लेकिन आप देखिएगा सुबह जरूर होगी।’ कारगिल युद्ध के बाद अटलजी को उनके कुछ मंत्रियों ने कहा, “हम आपको भारत रत्न देना चाहते हैं।”
अटलजी ने डांटते हुए कहा, “मैं खुद को भारत रत्न दे दूं क्या? भविष्य में किसी सरकार को लगेगा तो वो देगी, मैं खुद को नहीं दूंगा।” कारगिल युद्ध के बाद संबंध सुधारने के लिए वाजपेयी ने 2001 में परवेज मुशर्रफ को आगरा बुलाया था।
‘टेररिज्म’ शब्द को लेकर वाजपेयी की दृढ़ता के चलते मुशर्रफ को बैरंग पाकिस्तान लौटना पड़ा था। अटल बिहारी वाजपेई हर किसी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं और उनके द्वारा लिखी गई कविताएं हर किसी का मार्ग प्रशस्त करती हैं।