समाज कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं को याद रखा जाएगा !

0
341

महामारी के दौर में अपनी जान हथेली पर रखकर लोगों की जान बचाने वाले कोरोना वॉरियर्स को हमेशा याद रखा जाएगा। समाजसेवियों व अन्य कोरोना योद्धाओं ने लोगों की सेवा और अपने कर्तव्य के प्रति तत्परता को भुलाया नहीं जा सकता।

समाज कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं को याद रखा जाएगा !

डॉक्टरों और समाजसेवियों ने खुद की जान की परवाह किए बिना निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा की और इसी के चलते कई कोरोना योद्धाओं को अपनी जान भी गंवानी पड़ी।

उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। डॉक्टरों को भी मरीजों के इलाज के दौरान संक्रमण हुआ जिसके चलते कई डॉक्टरों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

समाज कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं को याद रखा जाएगा !

डॉ अर्चना भाटिया

इलाज के दौरान संक्रमित हुई डॉ अर्चना भाटिया का निधन 13 नवंबर की रात को हुआ। दरअसल जब दीपावली के मौके पर जब पूरा देश खुशियों और जश्न के माहौल में डूबा था वहीं एक डॉक्टर के घर में उदासी का माहौल छाया हुआ था। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की फरीदाबाद शाखा की सदस्य व शहर की प्रसिद्ध महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अर्चना भाटिया का 57 साल की उम्र में निधन हो गया।

समाज कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं को याद रखा जाएगा !

डॉ अर्चना भाटिया बेहद मिलनसार मृदुभाषी महिला थी पर मरीजों के उपचार के दौरान वह करो ना संक्रमित हो गई थी। जिसके चलते 13 नवंबर की रात उनका निधन हो गया।

डॉ. संतोष ग्रोवर

समाज कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं को याद रखा जाएगा !

डॉ. अर्चना भाटिया की तरह ही डॉ. संतोष ग्रोवर भी अपनी परवाह किए बिना अपने कर्तव्य के निर्वाह में दिन-रात जुटी रहती थी। डॉक्टर ग्रोवर अशोक नर्सिंग होम में प्रैक्टिस करती थी और मरीजों के इलाज के समय उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ था। जिसके चलते उन्हें सेक्टर 8 सर्वोदय अस्पताल में भर्ती कराया गया था पर रिकवर ना कर पाने के कारण 21 नवंबर को उनका देहांत हो गया।

डॉ बलराम गर्ग

समाज कल्याण के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले योद्धाओं को याद रखा जाएगा !

बल्लभगढ़ शहर की चावला कॉलोनी में रहने वाले 48 वर्षीय बलराम गर्ग ने लॉकडाउन में लोगों की मदद करने का बीड़ा तो उठाया पर उन्हें इसका अंदाजा नहीं था कि वह कितना बड़ा जोखिम उठा रहे हैं। लॉकडाउन में उन्होंने करो ना योद्धा की भांति पूरी तत्परता और निष्ठा से करुणा के खिलाफ जंग लड़ी जिसमें 6 दिसंबर को उनकी हार हो गई।