किसी को जब अपना घर मजबूरी में छोड़ना पड़ता है तो उस दर्द को बयां किया नहीं किया जा सकता है। भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान के बन्नू जिले से हजारों लोगों को लेकर एक ट्रेन भारत के लिए चली थी। देश विभाजन का दंश क्या होता है, यह कोई एनआइटी फरीदाबाद के निवासियों से पूछे, जिनके जेहन में 70 वर्षों बाद भी अपने स्वजन की शहादत की यादें ताजा हैं।
वो ज़ख्म वो पल ऐसे हैं जिन्हें भूलना असंभव है। उस ट्रेन में 3 हजार से ज्यादा लोग सवार थे। जब यह ट्रेन पाकिस्तान स्थित गुजरात स्टेशन पर पहुंची तो कबाइलियों ने इस पर हमला कर दिया।
वो कुछ इस प्रकार के जख्म हैं कि जिदगी भर न भूलने वाला कोई पल हो, जिस पर समय का मरहम लगने से आराम तो मिला, पर रह-रह कर आज भी अंतरात्मा सिहर उठती है। अंधाधुंध फायरिंग में करीब 2600 लोगों की जान चली गई। बचे लोगों को पहले सोनीपत में ठहराया गया, उसके बाद फरीदाबाद में बसाया गया।
वो ज़ख्म वो पल इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। कोई भी जब उन पलों के बारे में सोचे तो रोगंटे खड़े हो जाते हैं। यह दास्तान है 10 जनवरी, 1948 को उत्तरी पश्चिमी सीमांत प्रांत में रहने वाले हजारों हिदू एवं सिख परिवारों को लेकर लौट रही गुजरात ट्रेन पर हुए कबायली हमले की। इतनी बड़ी संख्या में एक साथ निर्दोष लोग की शहादत की यह घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज है और इस सच्ची घटना के दर्दनाक पलों को संजोए हुए है एनआइटी फरीदाबाद स्थित शहीदाने गुरुद्वारा गुजरात ट्रेन।
हमलों में जान बेक़सूर लोगों ने गवाई थी। अंग्रेज शासकों से जब देश आजाद हुआ, तब बंटवारा भी हुआ और पाकिस्तान एक नए देश के रूप में अस्तित्व में आया। हमले में जान गंवाने वाले लोगों की याद में टाउन नंबर 5 ई ब्लॉक में गुरुद्वारा शहीदाने गुजरात ट्रेन की स्थापना की गई।