भले ही समाज में स्थितियां परिस्थितियां और टेक्नोलॉजी ने एक नया परिवर्तन और अनोखा स्वरूप इस दुनिया को दे दिया है। मगर आज भी कहीं ना कहीं समाज में रूढ़िवादी सोच और असुरक्षा की भावना बेटियों के लिए ना सिर्फ उनके सपने को तोड़ देने की वजह बल्कि उम्र से पहले ही गृहस्ती के खूंटी में बांध देने का कारण बनी हुई है।
इसलिए जरूरत है कि बेटियों को अपने अधिकार के प्रति जागरूक होना होगा। वह अपने सपनो को पूरा करने के लिए आसमान में उड़ान भरने का दम रखना चाहती हैं। यह हम नहीं बल्कि जिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास आए आंकड़े कुछ ऐसा ही बयां कर रहे हैं, जो भविष्य को लेकर सकारात्मक संदेश दे रहे हैं।
गौरतलब, अप्रैल 2020 से लेकर दिसंबर 2020 तक जिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी के पास नाबालिग बेटियों की शादी के 12 मामले ऐसे मामले सामने उजागर जो यह शादी नहीं करना चाहती थी। वही पूरे मामले की जांच पड़ताल कर यह बात पता चली कि दो बेटियां बालिग थी,
जिनकी शादी करा दी गई और 10 नाबालिग बेटियों की शादी रूकवा दी गई। आप भी हैरान होंगे कि इसमें सात केस ऐसे थे जिसमें सूचना देने वाला कोई और नहीं, बल्कि किसी ना किसी माध्यम से खुद वही नाबालिग बेटियां थीं जिनकी शादी कराई जा रही थी।
इसका अर्थ यह है कि वह सभी बेटियां जानती थी उनका जीवन नर्क बन जाएगा। उन्होंने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखाते हुए समाज में एक मिसाल पेश करी है।
पहले मामले में बेटियां की शादी रूकवाई गई थी उसमें कलानौर क्षेत्र के एक गांव की बेटी भी शामिल थी। जब जिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी करमिंद्र कौर ने उससे खुलकर बात की। जिस पर बेटी ने बताया कि वह आगे पढ़ना चाहती है।
पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। यदि अभी उसकी शादी करा दी गई ताे वह गृहस्थी में बंधकर रह जाएगी। बाल विवाह निषेध अधिकारी ने अभिभावकों को समझाया, जिसके बाद अभिभावक भी उसे पढ़ाने के लिए तैयार हो गए।
वही दूसरे मामले में इसी तरह महम क्षेत्र की रहने वाली नाबालिग बेटी की भी शादी रूकवाई थी। टीम ने जब इस बेटी से बात की तो उसने भी कहा कि वह अभी शादी नहीं करना चाहती।
उसका सपना है कि नौकरी कर आत्मनिर्भर बने। मायके या ससुराल वालों पर निर्भर ना रहे। आत्मनिर्भर होगी तो ससुराल में उसका सम्मान भी होगा, लेकिन माता-पिता उसकी शादी करने पर उतारू है।
कहते हैं माता पिता अपनी बेटी की जान होते है। वही कई बार माता पिता दुनिया से बचाने के लिए बेटियों का बाल विवाह भी कर देते है। वही जब नाबालिग बेटियों की शादी करने वाले माता-पिता से भी टीम ने बात की तो उन्हें अपना अलग ही डर बताया।
उनका कहना था कि यदि बेटी 18 साल की हो गई तो उसे कई अधिकार मिल जाएंगे और वह अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुन लेगी, जिससे समाज में उनकी बदनामी होगी। घर से बाहर भेजने पर बेटियों के प्रति असुरक्षा की भावना भी मुख्य कारण है। इसी वजह से वह जल्दी से जल्दी बेटियों की शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं।
जिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी करमिंद्र कौर बताती है कि जरूरत है कि समय बदलने के साथ-साथ अब माता-पिता भी अपने विचारों में बदलाव लाए।उन्होंने कहा कि जैसे बेटों को अधिकार मिलता है वैसे ही जरूरी है कि बेटियों को भी समान अधिकार मिले।
उन्होंने कहा कि यह देखकर अब खुशी हो रही है और समाज को एक एक सकारात्मक संदेश मिल रहा है कि बेटियां अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही है। वह गृहस्थी से पहले आत्मनिर्भर बनना चाहती है। माता-पिता को भी उनका सहयोग करना चाहिए।