तो क्या WTO के दबाव में कृषि बिल लाने को मजबूर हुयी मोदी सरकार?

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इसे समझने के लिए आपको World Trade Organization (WTO) में पिछले कुछ वर्षों में हुए घटनाक्रम समझने पड़ेंगे, WTO की कृषि विषयों पर एक समिति है Committee on Agriculture (CoA) जिसका काम सभी देशों की संपूर्ण कृषि व्यवस्था को Control करना, उनके नियम कानूनों को Review करना और संबंधित देशों की सरकारों पर दबाव डालकर ऐसे कानून लागू करवाना है

जो अमेरिका, कनाडा, यूरोपियन यूनियन और आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के (या कह सकते उनके किसानों के) हित में हों, WTO की Committee on Agriculture की साल में तीन से चार बार बैठक होती है जिसमें पिछले वर्षों में जितनी भी बार बैठक हुयी है

तो क्या WTO के दबाव में कृषि बिल लाने को मजबूर हुयी मोदी सरकार?

लगभग हर बार विकसित देशों (खासकर अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय यूनियन) ने भारत के कृषि कानूनों को लेकर सवाल उठाये हैं और WTO के जरिए भारत सरकार पर दबाव बनाया है कि वो किसानों को सरकारी सहायता देना जल्द से जल्द बंद करे

WTO में भारत के खिलाफ जो शिकायतें की गयी हैं उसमें मुख्य शिकायत है MSP अर्थात् Minimum support price, विकसित देश इसके सख्त खिलाफ हैं कि भारत अपने किसानों को MSP जैसी कोई सुविधा दे

तो क्या WTO के दबाव में कृषि बिल लाने को मजबूर हुयी मोदी सरकार?

भारत की जिन अन्य योजनाओं पर WTO में शिकायत की गयी हैं वो हैं:

  • PM-KISAN योजना
  • PMFBY योजना
  • लोन माफ़ी
  • किसान सब्सिडी
  • आसान किसान ऋण
  • स्टॉक लिमिट

जो कनाडा आज भारतीय किसानों को सपोर्ट देने का पाखंड कर रहा है उसी कनाडा ने 2017 से 2020 के बीच में भारत के खिलाफ WTO में 65 सवाल उठाये हैं, कनाडा ने WTO में भारत पर PM-KISAN और PMFBY योजना को भी बंद करने के लिए दबाव डाला है

तो क्या WTO के दबाव में कृषि बिल लाने को मजबूर हुयी मोदी सरकार?

जो अमेरिका भारत का दोस्त बनने का नाटक कर रहा उस अमेरिका ने WTO की लगभग हर बैठक में भारत की सरकारी कृषि नीति पर सवाल उठाये हैं और भारत को किसानों की सहायता बंद करने के लिए दबाव बनाया है
यही हाल यूरोपियन यूनियन (EU) का है, जिसने भारत सरकार द्वारा किसानों को दिए जाने वाले Easy Agricultural Loan और Subsidies पर सवाल उठाये हैं

अच्छी बात यह है कि, भारत ने अभी तक इन Global Mafias के आगे घुटने नहीं टेके हैं, CANADA, USA और EU को भारत की जिस योजना (MSP) से सबसे बड़ी समस्या है उसे सरकार ने जारी रखने का फैसला किया है,

तो क्या WTO के दबाव में कृषि बिल लाने को मजबूर हुयी मोदी सरकार?

भारत सरकार फ़िलहाल WTO और माफिया देशों के दबाव में आकर जो तीन बिल ले आई है उसमें से निम्न दो बिल:

1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020

2. मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020

किसानों पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं डालते, सब उनकी मर्जी पर है, उनपे कोई भी दबाव नहीं डाला जा रहा कि वो बिल में जो लिखा है वही करे लेकिन इस बिल से मंडी के दलालों और बिचौलियों को भारी नुकसान है क्योंकि ये बिल पारित होने के बाद किसान मुक्त हो जायेगा अपनी फसल बेचने के लिए जो बिचौलियों के हित में बिलकुल भी नहीं है अब आते हैं तीसरे बिल पर, जो है

3. आवश्यक वस्तु संशोधन बिल

आसान भाषा में कहें तो अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्‍पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है और ये भारत के लिए आगे चलकर खतरनाक साबित हो सकता है

तो क्या WTO के दबाव में कृषि बिल लाने को मजबूर हुयी मोदी सरकार?

WTO में अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय यूनियन ने MSP के बाद भारत पर जिस बिल को पारित करने के लिए सबसे ज्यादा दबाव बनाया था वो यही है,

सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषि बिल में सिर्फ यही एक बिल है जिससे भारत का नुकसान है लेकिन किसानों का व्यक्तिगत रूप से इसमें भी कोई नुकसान नहीं है, वो उच्च कीमतों पर अपनी फसल कारपोरेट को बेचकर या विदेशों में एक्सपोर्ट कर के तब भी मजे में रहेंगे,

WTO और विकसित देशों के दबाव में लाये गए इस कृषि बिल के कुछ हिस्से निश्चित ही भारत विरोधी हैं जिसका विरोध किया जाना चाहिए लेकिन समस्या ये है कि लोग अपनी सुविधा अनुसार बिल को बिना पढ़े और जाने समझे इसका समर्थन या विरोध कर रहे हैं

तो क्या WTO के दबाव में कृषि बिल लाने को मजबूर हुयी मोदी सरकार?

कृषि बिल पर सरकार निश्चित ही WTO और विकसित देशों के दबाव में है लेकिन उसने फिर भी ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है जिससे किसानों पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता हो WTO शुरू से ही कुछ विकसित देशों और उनकी कंपनियों द्वारा नियंत्रित है जो गरीब और विकासशील देशों पर मनमाने नियम कानून लादकर अपना हित साधते हैं, कहने को WTO विश्व की भलाई के लिए बना था लेकिन वास्तव में ये EAST INDIA COMPANY का वर्तमान स्वरूप है

जिसके जरिये अप्रत्यक्ष रूप से पश्चिमी देश दुनिया पर आज भी वैसे ही राज कर रहे हैं जैसे आज से 100 साल पहले प्रत्यक्ष रूप से करते थे (World Bank और IMF भी इसी Global Mafia Government का हिस्सा है)

अगर हमारे किसान आज सड़क पर हैं तो इसके लिए निश्चित तौर पर WTO, IMF, WORLD BANK की तिकड़ी एवं EU, CANADA & USA की साजिशें निश्चित तौर पर जिम्मेदार हैं

हालांकि किसानों के विरोध प्रदर्शन का एक दूसरा पक्ष यह भी है कि, इससे विकसित देशों और WTO जैसे समूहों को नियंत्रित करने वाले Global Mafias को साफ संदेश मिल चुका है कि, भारत पर राज करना इतना आसान नही है

यह लेख रवि ओझा द्वारा लिखा गया हैं पहचान मीडिया किसी भी तरह इस खबर का ना तो समर्थन करता है ना हाई विरोध, पाठक अपने विवेक से निर्णय लें