नॉकरी खोई पर हौसला नही, फरीदाबाद के इस दंपति ने जीती मुश्किल हालातों से जंग

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फरीदाबाद के दंपत्ति अमृता व करण की लॉकडाउन के दौरान की संघर्ष की कहानी न केवल देश बल्कि विदेशों में भी प्रेरणा स्त्रोत बनी। तालकटोरा स्टेडियम के पास छोले और राजमा चावल बेचने वाले अमृता व करण के लिए लॉकडाउन काफी संघर्षपूर्ण रहा।

इस दंपत्ति के संघर्ष की कहानी के चर्चे दिल्ली के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा व और भी अन्य देशों तक छाए रहे। छोले व राजमा चावल बेचकर रोजगार छूट जाने पर इन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई।

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वैसे तो बीता वर्ष सभी के लिए संघर्षपूर्ण ही रहा है। कोविड के चलते लगे लॉकडाउन में न जाने कितने लोगों के रोजगार छिन गए, घर बिक गए, अनेकों लोगों के पास खाना खाने तक के पैसे नहीं बचे। लॉकडाउन ने न केवल लोगों के रोजगार व घर मकान छीने बल्कि बहुत से लोगों की सांसें तक भी छीन ली। अमृता व करण से भी उनका रोजगार व घर छिन गया।

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करण एक सांसद के यहां ड्राइवर की नौकरी करता था। लॉकडाउन में उसकी नौकरी के साथ-साथ उसके सर छुपाने को मिला सर्वेंट क्वार्टर भी छिन गया। कुछ समय के लिए गुजारा करने के लिए उसके ससुर ने उन्हें कार दी। लेकिन काम न होने के कारण दंपत्ति के पास किराए का घर लेने तक के पैसे नहीं थे।

उसके बाद अमृता व करण ने अपने घर का सारा सामान बेच दिया और कार को ही अपना आशियाना बना लिया। अमृता के कहने पर कार में ही उन्होंने अपना रोजगार शुरू करने का फैसला लिया।

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अमृता के कहने पर दंपती द्वारा लिया गया निर्णय रंग लाया। भले ही पहले दिन उनके छोले और राजमा चावल नहीं बिके लेकिन एक – दो दिनों में ही उनका रोजगार पटरी पर आ गया। पहले दिन उनका छोले व राजमा चावल ना बिकने से परेशान हो गए लेकिन उन्होंने अपना कार्य निरंतर रखा।

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प्रतिदिन 500 से ₹800 अमृता और करण कमा लेते हैं। 50 से अधिक ग्राहक रोजाना उनके पास खाना खाने आते हैं। पिछले साल नवंबर में इनकी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। इनके हौसले की सराहना विदेशों तक में की गई। अब यह दंपति फरीदाबाद में एक किराए के मकान में रह कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।