जानिए क्या है “रेरा” कानून, कैसे यह रियल एस्टेट इंडस्ट्री और घर खरीददारों को करता है प्रभावित

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    घर खरीदारों की सुरक्षा के लिए बनाया गया रेरा कानून पूरे देश में लागू हो गया है। रियल एस्टेट एक्ट 2016 (RERA) एक कानून है, जिसे भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद रियल एस्टेट सेक्टर में ग्राहकों का निवेश बढ़ाना और उनके हितों की रक्षा करना है। रेरा कानून यानि रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट के मुताबिक कोई भी प्रोजेक्ट बिना रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी की मंजूरी के लॉन्च नहीं किया जा सकेगा।

    अब नए नियम के मुताबिक, बिना रेरा में रजिस्ट्रेशन किए प्रोजेक्ट की बिक्री नहीं शुरू होगी। 2016 में संसद ने इस कानून को पास किया था। 1 मई 2016 को इसे लागू किया गया। 92 में से 59 सेक्शन्स 1 मई 2016 को नोटिफाई किए गए और बाकी के प्रावधान 1 मई 2017 से लागू कर दिए गए।

    जानिए क्या है "रेरा" कानून, कैसे यह रियल एस्टेट इंडस्ट्री और घर खरीददारों को करता है प्रभावित

    देश में लंबे समय से घर खरीददार इस बात की शिकायत कर रहे थे कि रियल एस्टेट की लेनदेन एकतरफा और ज्यादातर डिवेलपर्स के हक में थीं। केंद्रीय कानून के मुताबिक राज्यों को अपने यहां रेगुलेटर की नियुक्ति करनी है और रेरा के नियम बनाने हैं। लेकिन अभी तक सिर्फ मध्य प्रदेश ने ये दोनों काम किए हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र, दिल्ली, अंडमान-निकोबार और चंडीगढ़ ने अंतरिम रेगुलेटर और नियम बनाया है।

    जानिए क्या है "रेरा" कानून, कैसे यह रियल एस्टेट इंडस्ट्री और घर खरीददारों को करता है प्रभावित

    देश के बड़े बिल्डर्स भी रेरा का स्वागत कर रहे हैं। रेरा और सरकार के मॉडल कोड का मकसद मुख्य बाजार में विक्रेता और संपत्ति के खरीददार के बीच न्यायसंगत और सही लेनदेन तय करना है। उम्मीद की जा रही है कि रेरा बेहतर जवाबदेही और पारदर्शिता लाकर रियल एस्टेट की खरीद को आसान बनाएगा।

    जानिए क्या है "रेरा" कानून, कैसे यह रियल एस्टेट इंडस्ट्री और घर खरीददारों को करता है प्रभावित

    बिल्डर्स को रेरा में पहले से जारी प्रोजेक्ट शामिल करने पर आपत्ति है लेकिन फिर भी उनका मानना है कि ये कंज्यूमर और इंडस्ट्री दोनों के लिए अच्छा है। यह कानून फ्लैटों, अपार्टमेंट आदि की खरीद के लिए एक एकीकृत कानूनी व्यवस्था मुहैया कराता है, साथ ही पूरे देश में उसका मानकीकरण करता है।