हमारे देश में बहुत से जानवरों को पालते हैं। पालना भी चाहिए यह एक अच्छा कार्य है। लेकिन सिर्फ पालने से बात नहीं बनती आपको अपने पशु के साथ – साथ दूसरे जानवर को भी इज़्ज़त देनी होती है। भागवतपुराण में एक कहानी मिलती है जिसके अनुसार एक बार भगवान विष्णु को गजेंद्र नामक हाथी और मकरध्वज नाम के मगरमच्छ को बचाने के लिए धरती पर आना पड़ा था। क्योंकि उन पर इंसान लगातार अत्याचार कर रहे थे।
हमारे सामने काफी लोग जानवरों पर क्रूरता से अत्याचार करते हैं। यह अत्याचार पाप है। भगवान विष्णु ने सबसे बड़े पापों में किसी बेजुबान जानवर को कष्ट देने को अक्षम्य माना है। लेकिन समाज की कड़वी सच्चाई तो ये है कि लोग भगवान को पूजने के नाम पर न जाने कितने जानवरों पर रोजाना जुल्म करते हैं।
अपने घरों में अब जानवर तो पालते हैं लेकिन उसके साथ हमारा व्यव्हार कभी – कभी ऐसा होता है जो एक पाप है। अगर हम गत वर्षों की बात करें तो जानवरों पर क्रूरता के मामलों में इजाफा देखने को मिला है। वहीं जानवरों पर अत्याचार रोकने वाले कानून की बात करें, तो उसे देखकर ऐसा लगता है कि कानून का सख्ती से पालन ना करने की वजह से जाने-अनजाने अधिकतर लोग जानवरों पर अत्याचार करते हैं, जोकि कानून अपराध है।
हम हमेशा यह बात सुनते आए हैं कि हमारा संविधान हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है यह बात आपने कई बार सुनी होगी। लेकिन भारत के संविधान ने जानवरों को भी जीवन जीने की आजादी दी है। भारतीय संविधान के अनुच्छे 51(A) के मुताबिक हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है।
बहुत बार हम इस बात से अंजान रहते हैं कि जो हम कर रहे हैं इसकी सजा मिल सकती है। लेकिन हमारे कानून की धारा 428 और 429 के अनुसार किसी पशु को मारना या अपंग करना, भले ही वह आवारा क्यों न हो, दंडनीय अपराध है। कोई भी पशु सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा। बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा। प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट और फूड सेफ्टी रेगुलेशन में इस बात पर स्पष्ट नियम हैं।