बचपन से किताबों में पढ़ाए जाने वाला और पिछले लॉकडाउन में रामायण में दिखाया गया वह दृश्य भला कौन भूल सकता है। जब मेघनाथ द्वारा छोड़े गए बाण से श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण मूर्छित होकर जमीन पर गिर व्याकुल हो गए थे, और उनकी हालत बहुत नाजुक हो जाती है। ऐसे में अपने प्रभु को परेशान देखकर हनुमान संजीवनी बूटी लेकर समय से पहुंच जाते हैं और लक्ष्मण के प्राणों को बचा लिया जाता है।
भले ही उस समय कोई वायुयान या वाहन नहीं हुआ करता था, लेकिन आज के समय में दोपहिया वाहन चार पहिया वाहन व एंबुलेंस इतनी सारी वाहनों की कतार होने के बावजूद भी ऐसे ना जाने कितने लक्ष्मण है जो अस्पतालों में जिंदगी और मौत के बीच में लड़ गए हैं, उन्हें समय से संजीवनी बूटी के समान ऑक्सीजन सिलेंडर न मिलने से अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा है।
वैसे तो सरकार ऑक्सीजन तो मुहैया करवा रही है, लेकिन वह ‘संजीवनी बूटी’ की तरह समय पर पहुंच नहीं पा रही है, क्योंकि इसे लाने वाले ‘हनुमान’ की रफ्तार बहुत कम है, जिससे देर होने की संभावना बहुत अधिक है। दरअसल, नरवाना के नागरिक अस्पताल में पहुंचाई जाने वाली ऑक्सीजन की। यहां मरीज जिंदगी व मौत के बीच जंग लड़ रहे होते हैं
तो वहीं नागरिक अस्पताल में गाड़ी न होने के कारण ऑक्सीजन सिलेंडर ऑटो रिक्शा में मंगवाएं जा रहे हैं, जिससे समय बर्बाद होता है और लापरवाही के कारण किसी की जान भी जा सकती है। बता दें कि इस ऑटो रिक्शा से जींद से नरवाना आने जाने का सफर 4 घण्टे में तय होता है और इन 4 घंटों में ऑक्सीजन की कमी से कोई मरीज दम तोड़ सकता है।
कहने को तो हमारा देश तरक्की में आगे बढ़ता जा रहा है। विकास के नाम पर ना जाने कितने अलग-अलग तरह के खोज किए जा रहे हैं। मगर बड़े अफसोस की बात है कि यहां किसी की जान बचाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है, तो खाक है ऐसा विकास जहां इंसान की जान की कोई कीमत ही नहीं है।
दिन प्रतिदिन सामने आ रही मार्मिक तस्वीरें दिल को झकझोर कर रख देती है, कि आखिर हमारा देश किस और रुख कर रहा है। सारी सुविधाएं होने के बावजूद भी क्यों आज का आदमी अपनी सांसे लेने के लिए इतना बेकरार है, ऑक्सिजन के अभाव में दम घुटने से उसकी मौत हो रही है। बड़ा अजीब लगता है ना सुनकर, यकीन करिए मगर यही सच है।