महामारी की दूसरी लहर ने देश में हाहाकार मचा दिया है। प्रदेश के गांवों में भी महामारी ने दस्तक देदी है। प्रदेश सरकार खासकर स्वास्थ्य विभाग को जिसका डर था, वही हो भी गया है। कृषि कानूनों में सुधारों के खिलाफ टीकरी बार्डर और सोनीपत के सिंघु बार्डर पर धरने पर बैठे लोग संक्रमण का बड़ा कारण बन गए हैं। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहे संक्रमण की जड़ में आंदोलनकारी किसान संगठनों की जिद छिपी है।
महामारी की भयावहता से सभी परिचित हैं। किसानों को यह समझ नहीं आया। अपनी जिद में उन्होंने प्रदेश में महामारी के मामलों में ब्लास्ट कर दिया। सरकार की आशंकाओं पर अब स्वास्थ्य विभाग की सर्वे रिपोर्ट ने भी मुहर लगा दी है।
किसी भी राज्य में स्थिति संतोषजनक नहीं है। हर जगह स्तिथि चिंताजनक बनी हुई है। बढ़ते मामलों ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। राज्य सरकार ने गांवों में महामारी को रोकने तथा पीड़ित लोगों के इलाज के लिए करीब आठ हजाार टीमें बनाई हैं। इन टीमों में से कई ने अपनी रिपोर्ट स्वास्थ्य विभााग को दी है, जिनमें कहा गय है कि धरना स्थलों के साथ लगते जिलों के किसान संगठनों के नेता और आम लोग यहां-वहां जाकर गांवों में महामारी को फैलाने में लगे रहे।
दिल्ली की सीमांओं पर बैठे किसानों ने महामारी का बम फोड़ दिया है। किसानों को यह समझना होगा कि यह जानलेवा बीमारी किसी के फायदा का सौदा नहीं है। स्वास्थ्य विभाग के जरिये सरकार के पास पहुंची रिपोर्ट के मुताबक, रोहतक, जींद, कैथल, हिसार, झज्जर, गुरुग्राम और पानीपत सहित प्रदेश के अधिकतर उन्हीं जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण अधिक बढ़ा है, जहां के लोगों की धरना स्थलों पर निरंतर आवाजाही रही है।
महामारी की चपेट में आने वालों में सिर्फ भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं है बल्कि किसान से लेकर बड़े – बड़े विपक्षी नेता भी हैं। किसानों को यह समझना होगा की इतनी बड़ी संख्या में वह इस आंदोलन को न चलाये।