प्रदेश भर में वीवीआईपी गांव के रूप में विख्यात चौटाला गांव की स्थिति बद से बदतर बनी हुई है। इस गांव को वीवीआईपी गांव इसलिए कहते है क्योंकि इस गांव ने पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल तथा मौजूदा डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला जैसे नेता प्रदेश को दिए है। भाजपा के सिरसा जिलाध्यक्ष आदित्य चौटाला समेत 5 विधायक इसी गांव से हैं।
इसके बावजूद गांव के लोगों का सरकारी सिस्टम से भरोसा उठ चुका है। यह हाल सिर्फ चौटाला का ही नहीं, दूसरे गांवों का भी है, जहां का हेल्थ सिस्टम अधूरे स्टाफ और आधी सुविधाओं के सहारे ही खड़ा है।
पंजाब-राजस्थान की सीमाओं से लगता VVIP गांव चौटाला यहां महामारी इतना फैल चुकी है कि बीते 15 दिन से रोजाना 2 मौतें हो रही हैं। कोई नेता आज तक गांव में लोगों का हाल पूछने भी नहीं आया। गांव के लोग नेताओं को कोसते हुए कहते हैं कि अब इनसे उम्मीद भी नहीं बची है।
वोट मांगने खूब आए, लेकिन महामारी के समय एक बार भी कोई नेता किसी का हाल जानने नहीं आया। रुआंसे होकर धोलूराम कहते हैं कि आखिर यही पूछ लेते कि गांव में अब तक कितने वोट कम हो गए। कुछ तो सब्र हो जाता।
ग्रामीण यह भी कहते हैं कि यहां पर पीने का साफ पानी न मिलने के कारण भी कोरोना बढ़ रहा है। पहले कैंसर फैल रहा था और अब यहां पर खांसी-जुकाम की शिकायत हर घर में है। गांव के लोगों ने 6 साल पहले अजय सिंह चौटाला के सामने भी पीने के पानी का मुद्दा उठाया था। अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
गांव चौटाला के स्वतंत्रता सेनानी गंगाराम घोटिया के पोते धोलूराम कहते हैं कि पंचायत जब से भंग हुई है, तब से सैनिटाइजेशन के लिए भी इंतजार करना पड़ रहा है। अब तो 40 घर के लोग मिलकर 15 हजार रुपए का चंदा करते हैं।
अपने स्तर पर सैनिटाइजेशन करवाते हैं। अपनी जेब से DDT और मेलीथ्रीन की दवा खरीदकर लाते हैं और सरकारी संस्थानों और गली तक में स्प्रे खुद ही करवाते हैं। अब हालात ये हैं कि सरकारी स्प्रे का इंतजार नहीं कर रहे हैं, ताकि फैलती बीमारी को तत्काल रोका जाए।
गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 6 बेड लगाए गए हैं। यहां पर न ऑक्सीजन की व्यवस्था है और न ही पर्याप्त दवाएं। स्टाफ की कमी का रोना तो यहां भी है। खैर, गांव के इस अस्पताल पर ग्रामीणों का भरोसा कम ही है। हालात ज्यादा खराब हैं।
स्वयं यहां के सरपंच सतवीर कुमार का कहना है कि गांव में अभी तक 70 ग्रामीणों की रिपोर्ट पॉजिटिव आ चुकी है। रोजाना दो मौत का औसत है। पहले इतनी मौत कभी नहीं होती थी।
सरपंच कहते हैं कि गांव में 8 से 9 झोलाछाप डॉक्टर हैं। उन्हीं के भरोसे ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं चल रही हैं। गांव में मरीजों की संख्या बढ़ने लगी तो कुछ दिन पहले अपने स्तर पर ही सैनिटाइजेशन करवाया था।
पंचायत से पावर छिन जाने के बाद अब सैनिटाइजेशन करवाना भी आफत बना है। आज ही ग्राम सचिव से बात की तो पता चला कि गांव में मरीजों के लिए घर पर हेल्थ किट भेजी जाएंगी, लेकिन कब पता नहीं।