पिता चलाते थे रिक्शा भाई है मैकेनिक खुद फीस भरने के लिए बने थे वेटर, आज कड़ी मेहनत से बने IAS

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    समय बदलते ज़रा भी वक्त नहीं लगता है। आपको बुरे वक्त में बस कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। आज तक हमने बहुत से आईएएस अधिकारियों के संघर्ष और सफलता की कहानी आपसे साझा की है। आज जिस शख्सियत के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, उसकी कहानी सुनकर आप दांतो तले उंगली दबा लेंगे। अंसार को जानकर लगता है कि क्या यह हकीकत है या कोई फिल्म की स्क्रिप्ट सुनायी जा रही है।

    जब कुछ कर दिखाने का जुनून होता है तो आप बस उसी के बारे में सोचते हैं। लेकिन इस कहानी में गरीबी है, भूख है, हर तरह का अभाव है और साथ है तो हर हालात में पढ़ाई करने का जज्बा, आईएएस ऑफिसर बनने का जुनून और अंत में जीत उस साहस की होती है जो कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खुद को थामे रहता है, बिखरने नहीं देता।

    पिता चलाते थे रिक्शा भाई है मैकेनिक खुद फीस भरने के लिए बने थे वेटर, आज कड़ी मेहनत से बने IAS

    मेहनत का फल और समस्या का हल देर से ही सही पर मिलता ज़रूर है, इस कहावत को सच कर दिखाया है अंसार ने। अंसार के पिता अहमद शेख ऑटो रिक्शा चलाते थे और घर में मां-बाप के अलावा दो बहनें और एक भाई थे। कुल मिलाकर चार बच्चे और दो बड़े। पिता की कमाई से खर्चा पूरा नहीं पड़ता था इसलिये मां अज़ामत शेख भी लैंड लेबर का काम करती थीं।

    पिता चलाते थे रिक्शा भाई है मैकेनिक खुद फीस भरने के लिए बने थे वेटर, आज कड़ी मेहनत से बने IAS

    अंसार ने अपने लक्ष्य के रास्तें में आनेवाली सभी बाधाओं का डटकर सामना किया और अंततः अपनी मंजिल तक पहुंच ही गए। उनका यह सफर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा। उनकी मां खेतों में काम करके जो थोड़ा बहुत पैसा मिलता था वे अंसार को पढ़ाई के लिये उपलब्ध कराती थीं। इसी बीच जब अंसार कक्षा 4 में थे तो उनके पिता को किसी ने सलाह दी कि इसकी पढ़ाई बंद कराओ और काम पर लगाओ तो दो पैसे घर आयें। वैसे भी कौन सा पढ़ने से नौकरी मिल जायेगी।

    पिता चलाते थे रिक्शा भाई है मैकेनिक खुद फीस भरने के लिए बने थे वेटर, आज कड़ी मेहनत से बने IAS

    किसी भी इंसान को सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ सबकुछ हासिल करने की राह पर निकलना पड़ता है। आपका हौसला बुलंद होना चाहिए मुकाम तो मिल ही जाता है। इंसान को कभी हार नहीं माननी चाहिए।