गरीब बच्चों सड़क किनारे बैठा कर देती हैं मुफ्त शिक्षा, कभी खुद भी सड़कों पर रहने को थीं मजबूर

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    शिक्षा समाज में इंसान की इज़्ज़त बढाती है। अगर शिक्षित है कोई तो उसे ज़्यादा लोग पसंद करेंगे उसपर भरोसा करेंगे लेकिन अगर कोई अशिक्षित है तो उसे कोई पसंद नहीं करेगा। महामारी के कारण लगे लॉकडाउन का असर ना केवल रोज़गार पर पड़ा, बल्कि पढ़ाई के क्षेत्र में भी इसका बहुत बुरा असर देखने को मिला है।

    महामारी की मार सबसे अधिक गरीबों पर पड़ी है। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई की शुरूआत हुई लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई से उन बच्चों की मुसीबत और बढ़ गई, जिनके पास गैजेट की कमी है या ऑनलाइन क्लासेस के लिए इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा नहीं है।

    गरीब बच्चों सड़क किनारे बैठा कर देती हैं मुफ्त शिक्षा, कभी खुद भी सड़कों पर रहने को थीं मजबूर

    कई ऐसे बच्चे हैं जिनकी महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन में पढ़ाई छूट गयी। जो ऑनलाइन क्लास ले सकते थे उन्होंने ली शेष के लिए मुसीबत रही। संध्या उन लोगों के मदद के लिए आगे आई, जिनकी जिंदगी लॉकडाउन के वजह से रुक गई थी। संध्या कोयंबटूर के चिन्नमपेथी आदिवासी गांव की पहली महिला हैं, जिन्होंने ग्रेजुएशन किया है। वह यहां के जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दे रही हैं।

    गरीब बच्चों सड़क किनारे बैठा कर देती हैं मुफ्त शिक्षा, कभी खुद भी सड़कों पर रहने को थीं मजबूर

    खुद इन्होनें भी गरीबी को करीबी से देखा है। ऐसे में शिक्षा का महत्व वह अच्छे से जानती हैं। संध्या बताती हैं कि वह इन बच्चों को सभी विषय पढ़ाती हैं। लॉकडाउन के बीच वह तमाम मुश्किलों के बावजूद बच्चों को शिक्षित करने में जुटी हुई है। संध्या बताती हैं कि इस गांव में कुछ ऐसे भी परिवार है, जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि वे अपने बच्चों को स्कूल तक नहीं भेज पाते।

    गरीब बच्चों सड़क किनारे बैठा कर देती हैं मुफ्त शिक्षा, कभी खुद भी सड़कों पर रहने को थीं मजबूर

    शिक्षा की महत्वता को जो समझता है उसे दूसरों को शिक्षित करना काफी पसंद आता है। चिन्नमपेथी गांव के ज्यादातर बच्चे गरीबी के वजह से प्राइमरी या मिडिल स्कूल की पढ़ाई के बाद स्कूल जाना छोड़ देते हैं। संध्या इन सभी बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती हैं। पढ़ाई के अलावा संध्या बच्चों को लोक नृत्य और संगीत भी सिखाती हैं।