भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में वंशवाद इस कदर हावी है कि देश की हर बड़ी पार्टी अपने बेटों को सत्ता का वारिश बनाने में जुटे हुए हैं। इन दिनों हरियाणा में भी भाई भतीजावाद की राजनीति देखने को मिल रही है।
हरियाणा की कुछ बड़े नेता अपने लालों को सत्ता में लाने में जुटे हुए हैं। हरियाणा के तीन नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह, चौधरी ओमप्रकाश चौटाला और चौधऱी भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने पुत्रों के लिए शिद्दत से जिद्दोजहद कर रहे हैं।
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अपने पुत्र बृजेंद्र सिंह को हिसार से भाजपा का टिकट दिलाया। इसके लिए बीरेंद्र सिंह ने खुद केंद्र का मंत्रिपद छोड़ा। पुत्र सांसद भी बन गए। बीरेंद्र सिंह ने अभी हाल में हुए मोदी मंत्रिपरिषद के विस्तार के दौरान पुत्र को केंद्र में मंत्री बनाने के लिए अनेक उपक्रम किए। यह बात अलग है कि उनके प्रयास निष्फल रहे।
पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को स्थापित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हरियाणा का मुख्यमंत्री बनने के पहले हुड्डा रोहतक से सांसद थे। मुख्यमंत्री बन गए तो उनके लिए रोहतक के किलोई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर जीते श्रीकृष्ण हुड्डा ने उनके लिए सीट छोड़ दी।
तब लोग अनुमान लगा रहे थे कि हुड्डा अब अपनी लोकसभा सीट से अपने लिए विधानसभा की सीट छोड़ने वाले श्रीकृष्ण हुड्डा को लोकसभा का टिकट दिलाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने अपने पुत्र दीपेंद्र को राजनीति में उतारा। अपनी सीट से उन्हें टिकट दिलवाया और दीपेंद्र जीतकर लोकसभा में पहुंचे।
जहां तक चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की बात है, वह अपने बड़े पुत्र अजय चौटाला को तो राजनीति में स्थापित कर चुके थे, बस सत्ता आने की देर थी, लेकिन इसके पहले ही पिता-पुत्र दोनों को शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा हो गई और उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल का चेहरा उनके छोटे पुत्र अभय चौटाला बन गए।
स्पष्ट था कि चुनावों में यदि इनेलो को बहुमत मिलता था तो अभय मुख्यमंत्री होते, लेकिन यहां पेच फंस गया। अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला सांसद बन चुके थे और युवाओं में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। यहां तक कि इनेलो के कार्यक्रमों में दुष्यंत चौटाला के मंच पर पहुंचते ही सीएम आया, सीएम आया के नारे लगने लगते।
फरीदाबाद में भी दिख रही है वंशवाद की राजनीति
फरीदाबाद लोकसभा में भी वंशवाद की राजनीति हावी है। फरीदाबाद के सांसद कृष्णपाल गुर्जर अपने बेटे देवेंद्र चौधरी को सत्ता में लेकर आ चुके हैं।
इसके अलावा तिगांव विधानसभा के पूर्व विधायक ललित नागर भी अपने सुपुत्र अभिलाष नागर को आगामी जिला अध्यक्ष चुनाव में बतौर उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी में है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्र प्रताप भी अपने बेटे विजय प्रताप को सत्ता में ला चुके हैं।
बहरहाल, वंशवाद की राजनीति असल राजनीति पर भारी पड़ रही है। भाई भतीजावाद की राजनीति के बीच अच्छे और नए चेहरे समाज में उभर कर नहीं आ पाते है।