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शहर की अमूल्य धरोहर प्राचीन स्मारक हो रहे हैं गायब, पुरातत्व विभाग भी कर रहे हैं इतिश्री

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प्राचीन इमारतें तथा स्मारक किसी भी शहर की अमूल्य धरोहर होती है परंतु समय के साथ साथ पुरानी विरासत गायब होती जाती है ऐसा ही कुछ कुरुक्षेत्र के शाहाबाद तथा फरीदाबाद में देखने को मिल रहा है।

दूरी और दिशा का ज्ञान रखने के लिए बनाए गए पहचान कोस मीनार धीरे धीरे गायब हो रहे हैं वहीं इस मामले में पुरातत्व विभाग भी पीछे हटता नजर आ रहा है। पुरातत्व विभाग ने कोस मीनार की सूचना न होने के बाद कह कर इतिश्री कर रहा है।

शहर की अमूल्य धरोहर प्राचीन स्मारक हो रहे हैं गायब, पुरातत्व विभाग भी कर रहे हैं इतिश्री

दरअसल, शेरशाह सूरी के शासन काल में दूरी और दिशा के लिए कोस की मीनार बनाई गई थी परंतु अब यह मीनारें गायब हो गए हैं। शाहाबाद और फरीदाबाद में कोस की मीनार का पता नहीं लग रहा।

आपको बता दे कि कोस मीनार नंबर-13 फरीदाबाद के बल्लभगढ़ तहसील के मुजेसर क्षेत्र में थी। पुरातत्व विभाग के 11 मार्च 1919 के सर्वे में कोस मीनार को दिखाया गया था।

शहर की अमूल्य धरोहर प्राचीन स्मारक हो रहे हैं गायब, पुरातत्व विभाग भी कर रहे हैं इतिश्री

इस जमीन को बाद में एक कंपनी को दे दिया गया। विभाग की रिपोर्ट है कि कंपनी मालिक ने इसको तोड़ दिया गया। चार फरवरी 1984 को इसको लेकर कानून कार्रवाई करने की भी बात उठी।


जानकारी के अनुसार शेरशाह सूरी ने वर्ष 1540-45 तक शासन किया था। उसने ग्रांड ट्रंक रोड के किनारे कोस मीनार और सराय बनवाई थी। हर दो कोस (यानी 4.3 किलोमीटर) की दूरी पर कोस मीनार का निर्माण कराया था।

शहर की अमूल्य धरोहर प्राचीन स्मारक हो रहे हैं गायब, पुरातत्व विभाग भी कर रहे हैं इतिश्री

कोस मीनार में 21 गुना 21 फुट का प्लेटफार्म, इसके ऊपर 10 फीट का अष्ट भूजाकार व उसके ऊपर 14 फीट गोलाकार होता है। यह लाखौरी ईंटों और चूने से बनाया गया है। इसके बाद अकबर और जहांगीर ने इसको मजबूत बनाया।

इन्हीं मीनारों को देखकर सैनिक काफिले व राहगीर यात्र करते थे। पुराने समय में डाक भी इन्हीं मीनारों की तर्ज पर चलती थी। जहांगीर ने कोस मीनारों को पक्की ईंटों और पत्थरों से बनवाया था। कोस मीनारों को समय के साथ भूलते चले गए। कुछ मीनारों का अस्तित्व ही मिट चुका है।

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