महामारी के कारण लंबे समय तक लगे लॉकडाऊन ने न केवल बड़ो के बल्कि बच्चों के ऊपर भी गहरा प्रभाव छोड़ा है। खासकर बच्चों की पढ़ाई इससे सबसे अधिक प्रभावित हुई है। इस दौरान बच्चे घर में रहकर ही ऑनलाइन पढ़ाई करते रहे हैं। जिस कारण उनके स्वभाव में बदलाव महसूस किया गया है।
गौरतलब है की महामारी की दूसरी लहर के बाद अब स्कूल शुरू हो गए हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों के स्वभाव में अनेकों बदलाव नोट किए गए हैं और यह बदलाव कक्षा चार से आठवीं तक के बच्चों में अधिक पाया गया है। देखा जा रहा है कि बच्चे चिड़चिड़े हो गए है तथा कक्षा में बैठे – बैठे नींद की झपकी लेने लगते हैं और वे अपना होमवर्क भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
बच्चों के स्वभाव में आया यह बदलाव शिक्षकों एवं अभिभावकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। सिविल अस्पताल की मनोचिकित्सक डा. मोना नागपाल ने इस विषय पर बात करने पर बताया कि अब बच्चों को खेलकूद और फिजिकल एक्टिविटी की ओर मोड़ना होगा।
मनोचिकित्सक डॉक्टर मोना ने बताया कि लॉकडाउन का इतना लंबा समय हर आयु वर्ग की मनोस्थिति को डगमगाने वाला रहा है। लॉकडाउन से पहले ऑफलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चे अपने साथियों से मिलते थे, हंसी – ठिठोली भी करते थे।
स्कूल में पीटी के साथ खेलकूद, योग व खेल-खेल में ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से बच्चों का मानसिक-शारीरिक एवं बौद्धिक विकास होता रहता था। लेकिन महामारी के कारण लगे लॉक डाउन ने उनका सारा शेड्यूल ही अस्त – व्यस्त करके रख दिया। पुराने शेड्यूल में वापस लौटने में बच्चों को कुछ समय लगेगा, इसलिए शिक्षकों एवं अभिभावकों को अधिक चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
माता – पिता को इस समय बच्चों के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है। उन्हें चाहिए कि वे बच्चों के सोने व उठने का समय निर्धारित कर दें। बच्चों को मोबाइल, टैब, लैपटॉप इत्यादि का कम ही उपयोग करने दें तथा उनके खानपान का भी विशेष ध्यान रखें। इन सब के साथ अभिभावक बच्चों को आउटडोर गेम भी खिलाएं।
ज्ञात है कि बच्चों ने लॉकडाउन के दौरान अधिक समय मोबाइल, लैपटॉप, तब, टीवी स्क्रीन के सामने ही गुजारा है। इन सभी गैजेट्स से निकलने वाले ब्लू रेज आखों पर बहुत बुरा प्रभाव डालते हैं, नजर भी कमजोर हो जाती हैं। ऐसे में यदि बच्चा स्कूल से घर लौटते समय या होमवर्क करते समय सिर दर्द की शिकायत करता है या पहले के जैसे उसे कुछ याद नहीं हो पा रहा है तो उसकी आखों का चेकअप अवश्य ही कराएं।
माता – पिता को चाहिए कि बच्चों की बातों को नजरंदाज न करें बल्कि ध्यान से सुनें। स्वभाव में आए बदलाव पर गुस्सा करने की बजाय शांत ही रहें। बच्चों की भावनाओं को समझने के बाद ही अपनी बात रखें। बच्चों के सही मूड में ही बताएं की उनके लिए क्या अच्छा है और क्या नहीं व जितना हो सके उनके साथ समय व्यतीत करें। उन्हें प्यार से गले लगाएं तथा अपना स्पर्श महसूस कराएं, उनके साथ हल्की फुल्की एक्सरसाइज करें व खेलें। यदि बच्चा चिड़चिड़ापन दिखाता है तो आप शांत रहें।
मनोविज्ञानिक डॉक्टर मोना महामारी के प्रति जागरूक करते हुए कहती हैं कि कोरोना की तीसरी लहर से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे ही बच्चों के मन में इस महामारी के लिए डर न बैठाएं बल्कि इससे बचाव के टिप्स दें। स्कूल प्रबंधन की भी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को क्लास रूम से लेकर स्कूल बस तक शारीरिक दूरी का पालन कराएं।