असफलता पाने के बाद भी नही छोड़ी मेहनत, संघर्ष से पास किया UPSC exam, जानिए श्‍वेता की सफलता की कहानी

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जैसा कि आपको पता है कि देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक यूपीएससी की मानी जाती है। इस परीक्षा में पास होने के लिए विद्यार्थियों को बहुत मेहनत और लगन से पढ़ना पड़ता है। और जो भी इसमें पास हो जाता है, उसकी लाइफ बिकुल सेटल हो जाती है। ऐसी ही एक उत्तराखंड की बेटी के बारे में हम आपको बताएंगे, जिसने अपनी मेहनत से इस परीक्षा को पास किया है।

वैसे तो आज कल उत्तराखंड के अधिकतर युवा देश में राज्य का नाम रोशन कर रहे है। अपनी मेहनत और लगन से वह कई ऊंचे-ऊंचे मुकाम प्राप्त कर रहे है। मगर आज जिस प्रतिभाशाली और महत्वाकांक्षी बेटी के बारे में हम बात कर रहे वह केरल में एसडीएम बनी है। इनका नाम श्वेता नागरकोटी है और वह अल्मोड़ा जिले की निवासी है।

असफलता पाने के बाद भी नही छोड़ी मेहनत, संघर्ष से पास किया UPSC exam, जानिए श्‍वेता की सफलता की कहानी

आपको बता दें कि श्वेता ने 2020 में केरल कैडर से यूपीएससी की परीक्षा पास की थी। उन्होंने अपनी मेहनत और बुलंद हौसलों से 2020 में केरल से यूपीएससी की परीक्षा पास की थी और 410 वां रैंक हासिल किया था। उन्होंने निरंतर संघर्ष किया और अब उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर आईएएस का मुकाम हासिल किया है।

असफलता पाने के बाद भी नही छोड़ी मेहनत, संघर्ष से पास किया UPSC exam, जानिए श्‍वेता की सफलता की कहानी

जानकारी के मुताबिक आपको बता दे कि,  उन्होंने इंटरमीडिएट की पढ़ाई गाजियाबाद से की, जिसके बाद उन्होंने बीएससी बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई की और फिर यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू की।

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पहले प्रयास में उनको असफलता मिली थी, मगर उन्होंने अपने हौसले टूटने नहीं दिए और दोबारा मेहनत करी। और उसके बाद  यूपीएससी परीक्षा क्रैक कर ली और ऑल इंडिया 410 वीं रैंक प्राप्त कर अपने परिवार और देवभूमि का नाम रोशन किया। आपको बता दें कि श्वेता के पिता निजी कंपनी में कार्यरत हैं और उनकी माता ग्रहणी हैं और श्वेता के छोटे भाई सौरव अभी कॉलेज की पढ़ाई कर रहे हैं।

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अल्मोड़ा जिले की श्वेता नागरकोटी केरल के तिरुवनंतपुरम में उप जिला अधिकारी बन गई हैं और उन्होंने अल्मोड़ा समेत देवभूमि का नाम रौशन किया और अब वे वहां पर एसडीएम बन कर अपनी सेवाएं प्रदान कर रही है। श्वेता अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देती हैं। उन्होंने कहा है कि उनके माता-पिता ने कदम-कदम पर उनको प्रोत्साहित किया और पढ़ाई में बाधा नहीं आने दी।