नमस्कार! मैं फरीदाबाद, आपकी अपनी विकास विहीन स्मार्ट सिटी। मेरे बारे में कुछ और जानना है तो ये जान लीजिये कि भगवान ने मुझे पीएम के ‘विकास’ से पहले ‘विकास दुबे’ के दर्शन करवा दिए। टूटी सड़कों, जलभराव की ख़बरों और नए नए घोटालों के अलावा मैं एक और चीज़ के लिए जाना जाता हूँ, सूरजकुंड मेला। ओह! मुआफी चाहुंगा, अंतराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला।
एक मेला, एक उत्सव, एक जश्न और मेरे लिए मेरा स्वाभिमान। आखिर यही तो एकलौती धरोहर सहेजकर रखी है मेरे निज़ाम ने मेरे लिए। पर आज कल ख़बरों का बाज़ार, मेले का आयोजन टलने की ख़बरों से गर्म है।
सब कह रहे है कि कोरोना के प्रकोप से बचना है तो मेले का आयोजन रोकना पड़ेगा। खबर आई है कि पर्यटन विभाग के अधिकारी भी मेले के आयोजन पर संशय के बादलों को महसूस कर रहे हैं। आलसी अफसरों के लिए तो यह गुड न्यूज़ आखिर उन्हें अपने तलवे तो नहीं घिसने पड़ेंगे।
पर भैया! ये क्यों हो रहा है मेरे साथ? अब कैसे बताऊं सबको कि इस मेले की बदौलत कुछ दिन ही सही पर मैं खुलकर जी तो पाता हूँ। आखिर साल भर कूड़ा, कीचड़, प्रदूषण और गंदगी सहने के बाद फरवरी के महीने में, मैं खुदको स्वस्थ व स्वच्छ महसूस करता हूँ। यही वो समय होता है जब मेरी गलियों, कूचों, चौराहों और दीवारों को रगड़ रगड़ कर चमकाया जाता है। मेरा यकीन मानिये, मैं उस पल में खुदको ब्याह के लिए तैयार हुए दूल्हे जैसा महसूस करता हूँ।
इस मेले की बदौलत मेरे कितने अपनों के घर चलते हैं। जो पूरा साल इंतज़ार करते हैं, मेहनत करते हैं और अपने हाथ से नायब वस्तुओं को आकार देते हैं। कैसे समझाऊँ सबको की इस मेले से कितनो के सपने साकार होते हैं? जानता हूँ और ये भी समझता हूँ कि इस महामारी के दौर में बचाव कितना ज़रूरी है पर क्या करू मेरे अपनों का दुःख मेरे ग़म को बड़ाता है। सोचकर देखो उन छोटे शहरों से आने वाले कलाकारों के बारे में, उन मूर्तिकारों के बारे में, उन किरदारों के बारे में जो सूरजकुंड को अपनी कला से सजाते थे। क्या होगा उन सबका?