HomeFaridabadदुकानदारों से ज्यादा ज़रूरी है नेताओं की रैली : मैं हूँ फरीदाबाद

दुकानदारों से ज्यादा ज़रूरी है नेताओं की रैली : मैं हूँ फरीदाबाद

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नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद। कोरोना पीड़ित स्मार्ट सिटी। मैंने सुना कि कल कोई फरमान जारी किया है मेरी सरकार ने। सुना है कि शनिवार-रविवार दुकानों पर ताला लगा रहेगा। हफ्ते के यह दो दिन लॉकडाउन का पालन करेंगे। हाँ हाँ समझ गया की इसका कारण महामारी है पर अचानक से क्यों मेरे सरदार को यह आईडिया आया? अरे भाई इतने समय से जब नेता राजनेता रैली कर रहे थे तब इनके ज़हन में सामजिक दूरी के अंकुर नहीं फूटे?

मैं देखता हूँ इन्हे और इनकी हर हरकत पर मेरी नज़र रहती है। मैं जानता हूँ कि कैसे पक्ष-विपक्ष के नेतागण अपने स्वार्थ के लिए कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग की बलि दे चुके हैं। क्या याद नहीं आ रही अपनी करतूतें? मैं याद दिलाता हूँ। याद करिये वह दिन जब आयोध्या में मंदिर का शिलान्यास हुआ था। उस दिन फरीदाबाद की गलियों में मौजूद सभी कार्यालयों से रैली निकल कर, हवन करवाकर, प्रसाद वितरण करवाया गया था। इससे पहले की आप मेरे इस कथन से गुस्सा हों मैं आपसे अपील करूँगा, कि अपने दिमाग पर ज़ोर डालिये और सोचिये। सोचिये कि क्या उन कार्यालयों में उस दिन सामजिक दूरी का पालन हुआ था? क्या सही में उस दिन सभी कार्यकर्ताओं का रैली निकालना जायज़ था? अभी कुछ दिन पूर्व ही रक्त दान हेतु किये जा रहे एक कार्यक्रम में मैंने पार्टी कार्यकर्ताओं को तस्वीर खिचवाने के लिए एक दुसरे के ऊपर चड़ते देखा। क्या ऐसे ही सामाजिक दूरी का पालन किया जाता है?

दुकानदारों से ज्यादा ज़रूरी है नेताओं की रैली : मैं हूँ फरीदाबाद

जो दूकानदार इस समय नुक्सान से गुज़र रहे हैं उनके लिए इस महंगाई में आटा गीला करने का क्या मतलब? जब सफ़ेद पोश नेता ही महामारी की पीठ पर छूरा भोंक रहा है तो जनता से नुक्सान सहने की उम्मीद क्यों की जा रही है? मैंने सुनी हैं इन राजनेताओं की बाते। ये कहते हैं कि जनता नहीं समझती बस मनमानी करना जानती है। पर मैं जानता हूँ अपनी आवाम को जो फस जाती हैं इन सत्ता के भूखे भेड़ियों के जाल में। मैं जानता हूँ उन दुकानदारों को जो पूरी मेहनत से अपना पेट पालते हैं। मैं जानता हूँ उन दुकानों में काम कर रहे मजदूरों को जो पाई पाई के लिए तरसते हैं।

दुकानदारों से ज्यादा ज़रूरी है नेताओं की रैली : मैं हूँ फरीदाबाद

शनिवार-रविवार दो ऐसे दिन हैं जिसमे लोगों की छुट्टी होती है। यही दो दिन हफ्ते का मुनाफा बड़ाते हैं। सरकार को बेहतर कदम उठाने की ज़रुरत थी पर आपसी ताल मेल में कमी हो तो उसका खामियाज़ा जनता को ही भुगतना पड़ता है। याद है मुझे एक दफा मुख्यमंत्री साहब ने ही हफ्ते के इन दो दिनों में लॉकडाउन लगने के कथन को बेवकूफी बताया था। फिर क्या ज़रुरत थी उनके आला मंत्री को इस बेवकूफी भरे कथन को सत्य में तब्दील करने की?

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