नमस्कार! मैं फरीदाबाद एक ऐसा शहर जहां विकास उल्टे पैर दौड़ता है। मेरी कहानी बाकियों की कहानी से अलग है। उद्धरण के तौर पर मान लीजिये कि किसी नगर में उन्नति हुई तो वह नगर महानगर में बदल जाएगा। पर मेरी किस्मत में इस उद्धरण से विपरीत घटनाएं घटित हो रही है। कहने को मैं समार्ट सिटी हूँ पर धीरे धीरे मैं एक चिड़िया घर में बदल रहा हूँ।
कैसे? अब ये आप सबको पता ही होना चाहिए कि जिस तरीके से तेंदुओं ने आजकल मेरी चौखट पर आतंक मचा रखा है यह किसी घनिष्ट आबादी वाले शहर के लक्षण नहीं है। आप ही बताइये कि तेंदुए जैसा खुंखार जानवर कैसे मैदानी इलाकों में घुस पैठ कर सकता है?
यहां प्रगति के लिए पेड़ काटे जाते है, जंगलो को उजाड़ा जाता है और ताज़ी हवा के नाम पर प्रदूषण फैलाया जाता है। अब ऐसी स्थिति में न जंगल बच पा रहे हैं और ना ही पेड़ फिर बिचारे तेंदुए कहाँ जाएंगे। तो वो भी अपना बोरिया बिस्तर बाँध कर जनता के साथ रहने चले आ रहे हैं।
मैंने ये भी सुना है कि बंदरों के आतंक ने फरीदाबाद वासियों की नाक में दम कर रखा है। अरे भाई जिन मॉल्स, सिनेमा घरों और दफ्तरों में तुम जाते हो वहाँ पहले इन्ही बंदरो के घर हुआ करते थे पर प्रशासन को इनके पेड़ किसी काम के नहीं लगे और फिर वहाँ पर इमारतों का निर्माण करवा दिया गया। बोला तो था मंत्रीगण ने कि वृक्ष आरोपण किया जाएगा पर इसके विपरीत काम होता दिखाई दे रहा है। आज मेरी तमाम सड़कों पर बूढ़े बरगद, पीपल और नीम को काट कर छोड़ दिया जाता है। यही पेड़ इन बंदरों के घर थे जो अब उखाड़ कर फेक दिए गए हैं।
तो अब आप ही बताइये कि आखिर ये बन्दर जाए तो जाए कहाँ? अब आप बोलेंगे कि प्रशासन को इन्हे कैद कर लेना चाहिए। लेकिन मैं आपसे पूछता हूँ क्या कैद ही एकलोता विकल्प है ?
परसों मैंने जो देखा उससे मेरा कलेजा मुँह को आ गया। मैंने देखा कि एक गाँव के जोड़ पर कूड़े का अम्बार लगा हुआ है। उस दलदल के बीचों बीच एक गाय का शव है जिसे कीड़े खा चुके हैं। गाय फिसलकर दलदल में जा गिरी पर उस बेज़ुबान को किसी की मदद नहीं मिल सकी। वो गाय भी तड़पी होगी छटपटाई होगी तो क्यों किसी तक उसके मिमयाने की आवाज़ नहीं पहुंच पाई? प्रकृति का नियम है कि इंसान और जानवर के इस धरती पर अपने अपने अधिकार हैं। फरीदाबाद की आवाम और प्रशासन को इन अधिकारों का खनन करने की अनुमति नहीं है।