खनन पर प्रतिबंध लगते ही तेंदुओं की संख्या में दिखाई दिया इजाफा

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फरीदाबाद के अंतर्गत आने वाली अरावली पहाड़ी जितना अपने सौंदर्य पूर्ण के लिए जाने जाती है दुर्भाग्य की बात थी कि खनन होने के चलते यहां वन्यजीवों की संख्या कम होती दिखाई दे रही थी। पर खुशी की बात यह है कि खनन पर प्रतिबंध लगते हैं एक बार फिर तेंदुओं की संख्या में इजाफा होते हुए देखा जा सकता है।

1990 के दशक में अरावली में खनन पर प्रतिबंध का असर वन्य जीवों की बढ़ती संख्या के रूप में दिखने लगा है। वन्य प्राणी विभाग के लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात तेंदुओं की संख्या में इजाफा होना है। साल 2017 में हुई गणना के मुताबिक अरावली में कम से कम 31 तेंदुए थे। वन्य प्राणी विभाग का अनुमान है कि अब इनकी संख्या बढ़कर 50 हो चुकी है।

खनन पर प्रतिबंध लगते ही तेंदुओं की संख्या में दिखाई दिया इजाफा

तेंदुओं की बढ़ती संख्या दर्शाती है कि अरावली में पारिस्थिति संतुलन सुधर रहा है। दो दिन पहले गांव जाजरू के खेतों में चहलकदमी करते दो तेंदुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए थे। इससे करीब 15 दिन पहले ग्रीन फील्ड कालोनी में भी तेंदुआ देखा गया था। यह सभी घटनाएं अरावली में तेंदुओं की बढ़ती संख्या के तरफ इशारा करती हैं।

अरावली में जीवो की अब है संख्या

जीव साल 2017 साल 201

तेंदुआ, 31, 08

गीदड़ 166, 129

लकड़बग्घा 126, 17

जंगली बिल्ली 26 46

कस्तूरी बिलाव 61 00

लोमड़ी, 04 0 2

भेड़िया 03 00

खनन पर प्रतिबंध लगने से उक्त जीवो की तादाद बढ़ी

साल 2017 की सर्वे रिपोर्ट की मानें तो सबसे ज्यादा तेंदुए, लकड़बग्घा और गीदड़ की संख्या में इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, फरीदाबाद और गुरुग्राम जिलों के अंतर्गत आने वाले घामड़ौज, भौंडसी, रायसीना, मांगर, गोठड़ा, बड़खल, कोटला, कंसाली, नीमतपुर, खोल और पंचोटा में तेंदुए और लकड़बग्गों की स्थिति काफी बेहतर है।

अरावली की शान बढ़ाने वाले तेंदुओं की संख्या भी बढ़ी

अरावली को तेंदुए का हैबिटेट सेंटर माना जाता है। यहां तेंदुओं की संख्या अच्छी खासी है। कई बार तेंदुए जंगल से निकलकर आबादी की तरफ भी आ जाते हैं। बिल्ली परिवार के यह जीव अरावली की शान माना जाता है। कई बार तेंदुए लोगों को नजर भी आते हैं, जबकि कई बार ये दुर्घटनाओं के शिकार भी होते रहे हैं

इस समय तेंदुए ने दर्ज कराई अपनी मौजूदगी

05 दिसंबर 2016: गांव हरचंदपुर में तेंदुए के साथ दो शावक दिखे। लोगों ने शोर मचाया तो तेंदुआ वापस चला गया

24 नवंबर 2016: गांव मंडावर में करीब ढाई वर्ष का तेंदुआ गांव में घुस गया। भयभीत लोगों ने पीट-पीटकर तेंदुआ को मार डाला

मई 2016: सोहना क्षेत्र के गैरतपुर बांस के जंगलों में मृत मिला था तेदुआ

जनवरी 2016 : गैरतपुर बास से सटे जंगलों में पेड़ से बंधा मिला था शावक। बाद में इलाज के दौरान आगरा में मौत हो गई।

06 अक्टूबर 2017: मानेसर के मारुति प्लांट में तेंदुआ घुसा, 36 घंटे सर्च ऑपरेशन के बाद पकड़ा गया। फिर छोड़ा अरावली में।

02 मई 2017: सोहना के दमदमा क्षेत्र में दिखा था तेंदुआ

18 अप्रैल 2017: डीएलएफ गॉल्फ कोर्स में तेंदुआ दिखे जाने की सूचना, रात भर वन विभाग ने चलाया था सर्च अभियान, लगाया कैमरा।

29 मार्च 2017: मांगर में दिखा तेंदुआ, वहां मिले पग मार्क।

01 मार्च 2017: गांव हरचंदपुर में दो शावक के साथ दिखा तेंदुआ।

26 जनवरी 2019 : गुरुग्राम रोड पर पाली चौकी के पास सड़क हादसे में तेंदुए की मौत

अरावली के संरक्षण में लंबे समय से जुटे सुनील हरसाना बताते हैं कि जीवों को अपनी आबादी बढ़ाने के लिए घना जंगल व एकांतवास की जरूरत होती है। इंसानी दखल व शोर-शराबा जीवों को पसंद नहीं होता। पहले अरावली में जीवों की संख्या काफी अच्छी थी।

1970-80 के दशक में जमकर खनन हुआ। पत्थर तोड़ने के लिए बड़े स्तर पर डायनामाइट इस्तेमाल होते थे। दिन-रात डंपरों व मशीनों का आवागमन होता था। इसका असर जीवों की संख्या पर पड़ा। तब अरावली में गिने-चुने जीव बचे थे। 1990 दशक के आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसका असर अब दिखने लगा है।