नमस्कार! मैं फरीदाबाद आज आप सबको एक अजूबे के बारे मे बताना चाहता हूँ। उस अजूबे का नाम है शहर का नगर निगम। हाँ आप सबने बिलकुल सही सुना मैं शहर की निगम प्रणाली की ही बात कर रहा हूँ।
एक कहावत सुनी होगी आपने आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया, बस नगर निगम का भी यही हाल है। उधार में तैर रहा है मेरा निगम। जानते हैं क्यों? क्योंकि नगर निगम ने अपनी आय से ज्यादा लागत का काम करवाया है।
आपको समझाने के लिए आपके सामने एक आंकड़ा पेश करता हूँ। नगर निगम की 3 माह की आय है 6 करोड़ रूपये और बीते 3 माह में क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों की लागत है 30 करोड़ रुपये। अब बिचारा निगम विकास कार्यों में इतना लीन हो चुका था कि गणित ही भूल गया। अब बताइये मुझे ऐसे भी भला होता है क्या?
नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या की यह कहावत नगर निगम की इस बेवकूफी पर एकदम सटीक बैठती है। अब बात की जाए निगम के उधार में डूबने की तो आपको बता दूं कि जितना टैक्स नगर निगम में इकट्ठा किया जाता है वह पर्याप्त मात्रा से भी ज्यादा है।
निगम के पास कई टैक्स के रूप में प्रतिमाह 5 करोड़ रुपये आते हैं। 7 करोड़ रुपये स्टाम्प ड्यूटी के भी आते हैं। ऐसे में हर माह निगम के पास 10 से 12 करोड़ रुपये इकट्ठा हो जाते हैं। अब आप ही बताइए इतने पैसे जमा होने के बावजूद निगम का नुकसान झेलना कितना लाज़मी है।
नगर निगम अब अपनी फटी हुई जेब को सीने के लिए दाव खेल रहा है। ऐसे में निगम पर लांछन भी लग रहे हैं। सबसे बड़ा इल्जाम जो निगम पर लगाया गया है वह है ग्राम और ग्रामीणों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का।
नगर निगम में जिन 26 गांव को सम्मिलित किए जाने की बात चल रही है उन सभी ग्राम की पंचायतों के पास ग्राम विकास के लिए करोड़ों की संपत्ति है। ऐसे में ग्राम पंचायतों में निगम के फरेब करने की बात चल रही है।
पांचों का कहना है कि नगर निगम अब अपने ऊपर आई विपदा को ग्रामीणों के पैसे से खत्म करना चाहता है। मैं नही जानता कि निगम पर लगाए जा रहे यह तमाम इल्जाम कितने सही हैं।
मैं बस इतना जानता हूँ कि अगर नगर निगम यह कहता है कि शहर के विकास कार्य मे पैसे की लागत हुई है तो वह सरासर झूठ है। मैं यह बात दावे के साथ इसलिए कह रहा हूँ क्यों कि मैं रोज अपनी आवाम को परेशान होते देखता हूँ।
देखता हूँ कि कैसे पेयजल के लिए परेशान मेरी आवाम निगम को कोसती है। कैसे इस क्षेत्र का विकास हो रहा है। मैं सब देखता हूँ और सब जानता हूँ। नगर निगम अब बस एक प्रश्न चिन्ह के दायरे तक सीमित रह चुका है।