(खबर में बताई गई जानकारी सच्ची घटना पर आधारित है। पीड़ित के आग्रह करने पर उसका नाम बदल दिया गया है।)
नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद और आज आपको बदनसीबी की दास्तान सुनाने आया हूँ। मेरे सर पर स्मार्ट सिटी का ताज मुझे अभिशाप लगता है। जानते हैं क्यों? क्यों कि रोज मेरे प्रांगण में कई उम्मीदें टूटती-बिखरती हैं और उसका कारण है अनदेखी।
आज मैं आपको राकेश की कहानी सुनाता हूँ। राकेश इस कहानी का अहम किरदार जो अब एक दिव्यांग की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं। एक साल पहले वो अपने गाँव से रोजगार तलाशते हुए यहां उद्योगिक नगरी में आया था। उसके साथ उसकी पत्नी और नौ साल का बेटा अपनी आँखों में सपने लिए यहां आए थे। पर समय का चक्र हर किसी के दिन पलट देता है।
ऐसा ही कुछ हुआ राकेश के साथ। राकेश यहां आकर एक गत्ता फैक्ट्री में काम करने लगा सब कुछ ठीक चल रहा था। पर एक दिन काम करते समय दफ्तर में राकेश का दाहिना हाथ कटिंग मशीन में चला गया और उसकी दो उंगलियां कट गईं।
यह वाक्य शायद आप लोगों के जहन पर प्रभाव न दाल रहा हो। पर इस हादसे ने राकेश और उसके परिवार के सपनों को मौत के घाट उतार दिया। मैं आंकड़े नहीं जानता न उन आंकड़ों को बताने में दिलचस्पी रखता हूँ। मेरे लिए मेरे अपनों का दुःख मेरे सीने पर लोटता भुजंग है। अब सच से पर्दा उठाने की बारी है। इस सत्य से मैं आप सबको अवगत कराना चाहता हूँ।
मैं उस फैक्ट्री की सच्चाई बताता हूँ जहां राकेश के साथ यह भयावह हादसा हुआ। उस गत्ता फैक्ट्री में मजबूर लोगों का फायदा उठाकर उनका शोषण किया जाता है। न कोई प्रावधान है, न ही कोई मुहीम। अगर किसी के साथ हादसा होता है तो मुआफजे के नाम पर जुमलों से भरी टोकरी उस व्यक्ति तक पहुंचा दी जाती है।
दुःख व्यक्त किया जाता है और उस व्यक्ति को काम से निकाल दिया जाता है। यह सच है उस फैक्ट्री का और उसके जैसे तमाम शोषण स्थलों का। अब बारी है सवाल दागने की, कि क्या होगा राकेश का? क्या होगा उसके नौ साल के बेटे का? क्या है उसका भविष्य? कौन है जिम्मेदार?