उत्तर भारत में पहले ही वायु प्रदूषण खतरे के स्तर पर रहता है। और तो और पराली जलाने की वजह से दिल्ली में हर साल वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। दिवाली-दशहरा जैसे त्योहारों के समय में वायु प्रदूषण को नियंत्रण में रखने का ख़ास ख्याल रखना चाहिए। गाड़ियों का प्रदूषण, फैक्ट्रियों का धुआं और भी ऐसे अनगिनत कारण हैं जो वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं। और फिर इन सबके बीच, पराली जलना वायु प्रदूषण को खतरे के स्तर पर पहुंचाता है।
बीते दिन केवल पंजाब और हरियाणा में ही पराली जलाने के 700 से अधिक मामले सामने आये हैं। जिनसे मौसम विभाग और प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की चिंता बढ़ा दी है।
ये बहुत ही गंभीर मुद्दा है जिसका हल निकालना अत्यंत आवश्यक हो गया है। दरअसल, उत्तर भारत में पराली जलाने के कारण पैदा होने वाले वायु प्रदूषण से श्वसन संक्रमण का खतरा का काफी अधिक बढ़ रहा है। इतना ही नहीं, साथ ही इससे सालाना 30 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण एक्यूट रेसपिरेटरी इन्फेक्शन (एआरआई) का खतरा होता है। जिसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चों में इस संक्रमण का खतरा सर्वाधिक होता है।
अमेरिका के इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट और सहयोगी संस्थानों ने अपनी रिसर्च में इस बात की पुष्टि की है कि जिन सभी इलाकों में पराली जलाई जाती है, वहां के स्थानिय निवासियों में सांस लेने की तकलीफ से लेकर एक्यूट रेसपिरेटरी इन्फेक्शन होने की संभावना होती है जो उनके स्वास्थ्य के लिए एक बुरा संकेत है।
आईएफपीआरआई के रिसर्च फेलो और इस अध्ययन के सह लेखक सैमुअल स्कॉट ने कहा ‘वायु प्रदूषण पूरे विश्व के सभी देशों के लिए बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। वायु की खराब गुणवत्ता दुनियाभर के लोगों के स्वास्थ्य को नुक्सान पहुंचाएगी।’