नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद आज मैं एक विकट समस्या से घिरा हुआ हूँ। आने वाले कुछ दिनों में मेरे प्रांगण में खूब सारी शादियां होने वाली हैं जिसके लिए प्रशासन पूरी तरह तैयार है।
पर मैं जिस समस्या से घिरा हुआ हूँ वो ये है कि अब इन शादियों में मेज़बान किस किस को आमंत्रित करने वाले हैं? अरे भाई किसी का चाचा छूट रहा है तो किसी का फूफा।
खट्टर साहब ने तो फट फटाक से फरमान दे दिया कि शादी की दावत में 50 से ज्यादा लोग नहीं आएंगे पर अब उन परिवारों का क्या होगा जो एक महीने पहले ही निमंत्रण पत्र भेज चुके हैं? जरा सोचिए कि अब उन लोगों को जगह जगह फोन मिलाकर यह बोलना पड़ रहा है कि ” रै भाई इब मारे मतना आइये” ।
आधे लोगों का तो यह सोच सोचकर पसीना छूट रहा है कि उस मौसी को कैसे मना करेंगे जिन्होंने ब्याह के लिए नई बनारसी साड़ी खरीदी थी। वाह जी वाह खट्टर साब यो के कर दिया जनता के साथ?
हां जिस तारीके से महामारी ने हू हल्ला काट रखा है उस समय पर यह कदम अनिवार्य था पर अब उन ऊँची नाक वाले रिश्तेदारों को कौन समझाए कि इस बार आप आमंत्रित नहीं हैं?
खैर खूब हो लिया मज़ाक पर एक बात मैं मेरे निजाम, आदरणीय मुख्यमंत्री साहब से पूछना चाहता हूँ कि क्या आप जानते हैं कि एक शादी से कितने परिवारों के पेट भरते हैं? कितने घरों में चुल्हा जलता है?
फूल वाले, बैंड वाले, गायक, टेंट वाले और वो तमाम वेटर जो एक शादी में अपने परिवार का पेट पालने के लिए अजनबियों को भोजन परोसते हैं। कभी सोचा है उनके बारे में? अरे ये बिचारे तो खुलकर रो भी नहीं सकते क्योंकि इनके कंधो पर इनके परिवार का बोझ जो है।
मैं जानता हूँ कि बीमारी के इस दौर में यह कदम उठाना जरूरी था पर क्या करूँ मैं जब क्षेत्रवासियों की उम्मीदों को टूटता हुआ देखता हूँ तो मेरा मन पसीजता है। पर मेरे निजाम जब आपने ये कदम उठाया है तो आप अब इन बेसहारा लोगों की मदद भी तो करिए।
न रोजगार है न ही पैसा, हां रोज बढ़ती महँगाई जरूर है। ऐसे में मेरे मालिक इन लोगों को आपके समर्थन की दरकार है।