नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद और आज मैं मेरे अतिप्रिय नगर निगम को शाबाशी देने के लिए आया हूँ। मैंने सुना नगर निगम को अब क्षेत्र में निर्माण करवाने के लिए ठेकेदार नहीं मिल पा रहे हैं। अरे मेरे प्यारे निगम अगर तुम्हारे काम ठीक होते तो ना तुम्हारे साथ कोई हाथ मिला पाता।
मैंने सुना था चोर चोर मौसेरे भाई होते हैं पर नगर निगम और ठेकेदारों के रिश्तों को देख ऐसा नहीं लगता। लापरवाही में अव्वल नगर निगम अब इतना मजबूर हो चुका है कि टूटे हुए पुल पर ही जनता की सवारी शुरू करवा बैठा है। अरे भई तुम्हारे कार्यालय में तो वैसे भी अफसरों को मौत से डर नहीं लगता तभी बिन मास्क पहने बैठे रहते हैं।
पर मेरी आवाम को तो अपनी जान की परवाह है तो उन्हें जर्जर हुए पुल पर दौड़ाने का क्या मतलब ? ठेकेदार नहीं है, अधिकारी कार्यालय से गायब रहते हैं, लोगों की परेशानियों का ब्यौरा नहीं लिया जाता अरे क्या क्या गिनवाऊँ मैं ? जनता की नाक में दम किया हुआ है।
अब कल ही की बात बताता हूँ जब क्षेत्र का एक आम नागरिक निगम कार्यालय में मौजूद सरकारी मुलाजिम के पास अपनी परेशानी लेकर पहुंचा तब अधिकारी की कुर्सी खाली थी और अधिकारी धूप सेंकने में व्यस्त था। पूछने पर यह अधिकारी कहते हैं कि मीटिंग में मसरूफ थे पर सच से पर्दा कोई नहीं उठाता।
निगम की लापरवाही का नमूना है क्षेत्र में हो रहा सुधारकार्य। हद तो तब हो जाती है जब मेरे प्रांगण में मौजूद सबसे व्यस्त रहने वाले नीलम पुल की मरम्मत के लिए निगम को ठेकेदार नहीं मिल पाते। आवाजाही को शुरू कर दिया गया है और जर्जर हुआ पुल अभी भी उसी हालात में है।
पुल के ऊपर आए दिन हजारों टन का बोझ रहता है अगर जल्द ठेकेदार की व्यवस्था नहीं कराई गई तो उस भयावह मंजर की कल्पना करना मेरे मुश्किल है जो मेरे प्रांगण में त्राहिमाम मचाएगा। बाकी नगर निगम प्रणाली से तो अनुरोध ही किया जा सकता है कि अब आपको खुद में सुधार लाने की जरूरत है।