नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद और आज मैं आपको आया हूँ। यह कहानी मेरे प्रांगण में जीवन निर्वाह करने वाले एक मजदूर की है और मेरा यकीन मानिये कि यह महज एक कहानी नहीं सबसे बड़ा सच है।
मेरे क्षेत्र में रहने वाला एक बुजुर्ग मजदूर अपने परिवार के साथ सफर करते हुए एक रैन बसेरे का दरवाजा खट खटाता है। उसका स्वागत तो कर लिया जाता है पर सुविधाओं की माला उसके गले में नहीं डाली जाती। यही सच है मेरे प्रांगण में मौजूद तमाम रैन बसेरों का।
महामारी के दौर में नाम का सैनेटाइजर और कपकपाती ठण्ड में आधे फटे गद्दे उस मजदूर को दे दिए जाते हैं। मास्क है या नहीं है इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता बस रैन बसेरे नाम का एक मिराज बनाकर जनता के बीच उतार दिया जाता है।
अब इन रैन बसेरों से जुड़ी एक और काली सच्चाई से पर्दा उठाना चाहता हूँ। आप यहाँ ठहर सकते है पर सुविधाओं के नाम पर इन बसेरों के हालात ठन ठन गोपाल हैं। अगर किसी व्यक्ति को शौचालय का प्रयोग करना है तो उसके लिए यह कृत्य बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता है।
रेन बसेरों में शौचालय की व्यवस्था नहीं की गई है। आलम यह है कि अगर कोई रैन बसेरा ओल्ड फ्लाईओवर के नीचे बसा हुआ है तो उसमे ठहरने वालों को शौचालय के प्रयोग के लिए ऑटो का प्रयोग करने किलोमीटर से ज्यादा लम्बा सफर तय करना पड़ता है।
सोचने वाली बात यह है कि अगर कोई बुजुर्ग या दिव्यांग टॉयलेट का प्रयोग करना चाहता है तो उसे इस हाड़ कपाने वाली ठंड में मशक्कत करनी पड़ेगी। पर शायद मेरे निजाम यही चाहते हैं और नगर निगम की कारस्तानी का तो कोई जवाबी ही नहीं।
यह नगर निगम का ही तो किया धारा है जिसका खामियाजा क्षेत्र की जनता को भुगतना पड़ रहा है। रैन बसेरे तो बना दिए पर शौचालय बनाना भूल गए। ऐसे विकास कार्य की उम्मीद मुझे हमेशा से ही अपने नगर निगम से रहती है।
पर गौर करने वाली बात यह है कि क्षेत्र के आलाकमान अफसर और अधिकारी क्या कर रहे हैं ? इस प्रकार की व्यवस्था क्षेत्र के उन तमाम नेताओं के मुँह पर तमाचा है जो फरीदाबाद को विकसित समझने की भूल कर बैठे हैं।