केंद्र सरकार का कृषि कानून को लेकर सैकड़ों किसानों को केंद्र सरकार के बीच सुलह करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक समिति का गठन किया गया था। वहीं दूसरी तरफ आप एक किसान संगठन ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करते हुए यह कहा है
कि नए किसान कानूनों को लेकर प्रदर्शनकारी किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध को हल करने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा गठित पैनल से सदस्यों को हटा दिया जाए।
दरसअल, शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में, भारतीय किसान यूनियन, लोकशक्ति ने पक्षपात की संभावना जताते हुए कहा था, “इन व्यक्तियों को सदस्य के रूप में गठित करके न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन होने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सदस्य, किसानों को समान मापदंडों पर कैसे सुनेंगे जब उन्होंने पहले से ही इन तीनों कृषि कानून का समर्थन किया हुआ है।”
ऐसे में मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने सुनवाई के दौरान कहा कि “हमने समिति में विशेषज्ञों को नियुक्त किया है क्योंकि हम विशेषज्ञ नहीं हैं। उन्होने कहा कि आप समिति में किसी पर संदेह कर रहे हैं क्योंकि उसने कृषि कानूनों पर विचार व्यक्त किए हैं?”
पैनल फैसला सुनाने का आधिकार नहीं है तो इसमें पक्षपात कहां से आ गया। न्यायधीश ने यह भी कह दिया कि वे कृषि क्षेत्र में प्रतिभाशाली दिमाग वाले लोग हैं। आप उनका नाम कैसे मलिन कर सकते हैं?
यूनियन ने अपनी याचिका में इस पैनल में विरोध प्रदर्शन करने वाले कृषि नेताओं के साथ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति करने का अनुरोध किया है। SC ने 12 जनवरी को किसानों की शिकायतों को सुनने और आठ सप्ताह में एक रिपोर्ट पेश करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया था।
इसके बाद गुरुवार को अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने “किसानों के हितों” का हवाला देते हुए खुद को पैनल से हटा लिया था।
बता दें कि इस कोर्ट की बनाई कमिटी में अशोक गुलाटी, अनिल घनवट,भूपिंदर सिंह मान और प्रमोद जोशी के नाम थे। इसके बाद गुरुवार को अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने “किसानों के हितों” का हवाला देते हुए खुद को पैनल से हटा लिया था।