आज हम बात करेंगे दिल्ली के दीपक छाबड़ा की, जो 9 साल से नौकरी कर रहे थे। जैसे तैसे उन्होने नौकरी छोड़कर अपना रेस्टोरेंट शुरू किया। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। रेस्टोरेंट शुरू करने के 5 महीने बाद ही लॉकडाउन लग गया और उन्हें इसे बंद करना पड़ा।
इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। वो बताते है कि बचपन से ही मुझे चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पैदा होते ही तेज बुखार आ गया था। डॉक्टर ने गलत इंजेक्शन दे दिया, जिससे ब्रेन में दिक्कत आ गई। फिर मां-बाप गुरुद्वारा ले गए। रब की रहमत से मैं ठीक हो गया। बड़े कठिन हालातों में ग्रेजुएशन किया। फिर प्रिंटिंग का काम करने लगा।
कुछ समय घर में मेस भी चलाई, लेकिन वो काम भी ज्यादा चला नहीं। फिर एक स्पोर्ट्स कंपनी में पैकेजिंग का काम देखने लगा। नौकरी तो बढ़िया चल रही थी, लेकिन सैलरी महज 15 हजार मिलती थी, जिससे गुजारा करना मुश्किल पड़ रहा था।
जो भी पूंजी थी, वो सब बिजनेस में लगा दी। काम बढ़िया चलने भी लगा था। हर रोज 50-60 ग्राहक आने लगे थे, लेकिन तभी मार्च में लॉकडाउन लग गया। इसके बाद उन्हें रेस्टोरेंट बंद करना पड़ा। सुबह से शाम तक घूम-घूमकर देखा करता था कि लोग कर क्या रहे हैं? कैसे पैसा कमा रहे हैं? इसलिए तय किया कि मैं भी अपनी बाइक पर एक कैरियर लगवाऊंगा और उसी से छोला कुल्चा, छोला चावल बेचना शुरू करूंगा।
पिछले साल जून में ही उन्होंने फिर काम शुरू कर दिया। इस बार न वर्कर्स रखे थे न किसी को किराया देना था। खुद सुबह 6 बजे उठता हूं। 10 बजे तक खाना तैयार करता हूं। फिर 11 बजे से अपनी दुकान खोल लेता हूं। मुझे पहले दिन से ही अच्छा रिस्पॉन्स मिलने लगा। कभी दोपहर में 3 बजे ही पूरा खाना खत्म हो जाता है तो कभी 5 बजे तक लगभग सब खत्म हो जाता है।