कहते हैं कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती चाहे वह किसान हो या कोई आईएएस अधिकारी। अगर कोई मेहनत करता है तो उसका फल उसको इसी जीवन में मिलता है।
ऐसे ही एक शख्स से हम आपको मिलवा ना चाहते हैं जो कि आई के एस के पद पर तैनात है। लेकिन वह अपनी जमीनी हकीकत को नहीं भुला है।
उसको पता है कि वह एक किसान परिवार से तालुक रखता है। इसी वज़ह से आईएएस अधिकारी आज भी टाइम निकल कर खेती का कार्य करते है। इन दिनों खेतों में गेहूं पक चुके हैं। कुछ किसानों के द्वारा गेहूं की कटाई के लिए लेबर को लगाया जाता है। लेकिन कुछ किसान अपने ही परिजनों के साथ मिलकर अपनी गेहूं की फसल को काटते हैं।
आईएएस लेवल पर तैनात अधिकारी के पास भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है। उनको कई बार सम्मान भी दिया गया है। वह आईएएस अधिकारी भी आसानी से अपने गेहूं की खेती को कटवाने के लिए लेबर को लगवा सकते है। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
वह खुद सुबह व शाम के समय अपनी ड्यूटी के बाद अपने खेतों में जाकर गेहूं की कटाई करते है। हम बात कर रहे हैं पंजाब के संगरूर में जिला उपायुक्त के पद पर तैनात रामवीर सिंह की।
जिला उपायुक्त रामवीर सिंह मुंह पर सूती कपड़ा व हाथों में दराती लेकर खेतों पर गेहूं काटकर लोगों को या फिर किसानों को एक संदेश दे रहे हैं कि मेहनत करना कोई बुरी बात नहीं है। क्योंकि वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं।
इसीलिए उनको खेती-बाड़ी का काफी अच्छा अनुभव है। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने सरकारी आवास पर एक गाय भी पाली हुई है। जिसका वह खुद ही दूध व अन्य कार्य करते हैं।
जिला आयुक्त रामवीर सिंह का कहना है कि किसान परिवार के बेटे का फर्ज है कि वह अपनी खेती और मिट्टी को बचा कर रखें। इसी वजह से वह सरकारी ड्यूटी के बाद जब भी उनको समय मिलता है खेतों में समय बिताना पसंद करते हैं।
वैसे तो रामवीर सिंह का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के किसान परिवार में हुआ है। उनके पिता भी सरकारी नौकरी करते थे। लेकिन रिटायरमेंट के बाद खेती बाड़ी से जुड़े रहे।
जिला उपायुक्त रामवीर सिंह ने दिल्ली के जेएनयू से राजनीतिक शास्त्र में b.a., m.a. करने के बाद राम सिंह ने सिक्योरिटी इंश्योरेंस में एमफिल की पढ़ाई की।पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने सिविल सर्विस के लिए तैयारी करना शुरू कर दिया। साल 2009 के बैच में आईएएस बनकर उन्हें अपने परिवार का नाम रोशन किया। 21 अगस्त 2009 को उनकी पहली नियुक्ति मिली थी।
उन्होंने बताया कि दिन भर का समय दफ्तरी कामकाज में निकलता है। इसके बाद अनाज मंडी में गेहूं की चल रही खरीद का जायजा लेने के लिए भी जाते हैं। शाम को जब वह घर लौटते हैं। तो सरकारी आवास के पास बने खेतों में जाकर गेहूं की फसल की कटाई करते हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने खेतों में सब्जी व फल भी बोए हुए हैं। जिनकी देखरेख वह खुद ही करते हैं।
उनका मानना है कि हर व्यक्ति को अपने बचपन की जो यादें होती है उसको समेट कर रखना चाहिए। चाहे वह किसान की खेती बाड़ी ही क्यों ना हो। उन्होंने बताया कि उन्होंने बचपन में अपने पिता को खेतों में काम करते हुए देखा है। जिससे उनको प्रेरणा मिलती है कि वह अपनी जमीनी स्तर को कभी नहीं भूले।
उनका यह भी मानना है कि उनके बच्चों को भी पता होना चाहिए कि उनके पूर्वज क्या कार्य करते थे और उन्होंने किस तरह से अपने बच्चों का पालन पोषण किया है। यह कार्य करने से किसी प्रकार की कोई शर्म महसूस नहीं होती है। बल्कि उनको गर्व होता है कि वह एक किसान के बेटे हैं और जो इतने ऊंचे पद पर तैनात हैं ।