एक बार फिर लॉकडाउन का आभास, उधर लोगों की थमती सांस क्या फिर रुकेगा देश का विकास

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जब तक मुसीबत अपने गले में खुद ब खुद नहीं पड़ती तो लोगों को समझ में नहीं आती कि वाकई उनके लिए उचित और अनुचित क्या है। ऐसा ही कुछ आजकल देश भर में देखने को मिल रहा है। जहां संक्रमण को लेकर लोग बेफिक्र बंद हो गए थे व

हीं अब उनके मन में पनपता संक्रमण को लेकर खौफ बाहर निकल वालें उनके कदमों को थामे हुए हैं, और इस संक्रमण के प्रति सचेत करने के लिए दिन प्रतिदिन बढ़ती संक्रमितों की संख्या तलवार की तरह सर पर लटकी हुई खतरे की तरह मंडरा रही है।

एक बार फिर लॉकडाउन का आभास, उधर लोगों की थमती सांस क्या फिर रुकेगा देश का विकास

दरअसल, जहां आमजन को अब एक बार फिर यह एहसास होने लगा है कि सरकार कभी भी उनके प्रदेश व क्षेत्र में लॉकडाउन जैसी परिस्थिति को लाकर खड़ा कर सकता है, तो वही पिछले एक वर्ष में जो भी आर्थिक मंदी व विकास के कार्य थमे हुए थे।

उन्होंने बस गति पकड़नी शुरू ही की थी, कि एक बार फिर संक्रमण और संक्रमितों की बढ़ती संख्या ने विकास के कार्यों को ग्रहण लगा दिया है।

एक बार फिर लॉकडाउन का आभास, उधर लोगों की थमती सांस क्या फिर रुकेगा देश का विकास

वहीं अगर औद्योगिक नगरी कहे जाने वाली फरीदाबाद जिले की बात करें तो यहां विकास का पहिया तो मानो थम सा गया है। सैकड़ों मजदूरों के पलायन करने के साथ ही उद्योग जगत को एक बार फिर से झटका लगने लगा है। दरअसल, जिन मजदूरों को देश की रीढ़ कहा जाता है।

उन्हें भी लॉकडाउन जैसी परिस्थिति की वास्तविक सच्चाई पता चल चुकी है। इसलिए वह सरकार पर भरोसा जताने की जगह अपने पैतृक गांव में पलायन करना बेहतर समझ रहे हैं।

एक बार फिर लॉकडाउन का आभास, उधर लोगों की थमती सांस क्या फिर रुकेगा देश का विकास

मगर, सरकार को समझना होगा कि लॉकडाउन लगाना किसी भी परिस्थिति से सामना करने का हल नहीं है, क्योंकि लॉकडाउन की परिस्थिति गरीब तबके के मजदूर की कमर तोड़ देती है। बड़ा दुर्भाग्य है हमारे देश का कि देश को चलाने वाले मजदूरों की दुर्दशा से हर बार यह समझौता कर लिया जाता है।

मगर उनकी मनोदशा को सुधारने के लिए कभी भी कोई सराहनीय कदम क्यों नहीं उठाए जाते हैं? क्यों केवल गरीबों को ही दबने के लिए छोड़ दिया जाता है, और आज भी आर्थिक मंदी के पहिए को डगमगाने से बचाने के लिए दिन रात मेहनत मजदूरी कर रहे मजदूरों को पलायन करने की जरूरत आन पड़ी है।

एक बार फिर लॉकडाउन का आभास, उधर लोगों की थमती सांस क्या फिर रुकेगा देश का विकास

अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक बार फिर आर्थिक मंदी पर सवालिया निशान खड़े होते देर नहीं लगेगी।