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महामारी ने दो बच्चियों को किया अनाथ, मदद के लिए किसी ने नही बढाया हाथ

हर गुजरते दिन और गुजरते दिन के साथ देशभर के कोने-कोने से सामने आ रही तस्वीरें दिल को छलनी कर देती हैं। संक्रमण के चलते ना जाने सैकड़ों परिवारों ने कितने अपनों को खोया ना तो आप और हम मिलकर किसी का दुख काम कर सकते हैं, और ना ही इस दर्द को शब्दों के जरिए बयान कर सकते हैं।

सिर्फ महसूस करके देखें भी तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भारत में किसी बीमारी से तबाही का मंजर जो सिर्फ वीडियो या फिर फिल्मों में देखने को मिला वो भी जिसे नाट्य रूपांतरण के रूप में दिखाया गया था।

महामारी ने दो बच्चियों को किया अनाथ, मदद के लिए किसी ने नही बढाया हाथ

वह मंजर हकीकत में दिल को दहला देने वाला होता है, जिसे आज पूरा भारत हर गुजरते दिन के साथ देख रहा है, लेकिन अफसोस के अलावा और किया भी कुछ नहीं जा सकता।

ऐसी ही फिर एक नई तस्वीर बस्तर में देखने को मिली है, जिसे देखकर आपकी भी आखें नम हों जाएंगी। दरअसल, यहां संक्रमण के चलते दो मासूम बच्चों के सिर से माता-पिता का साया छीन लिया। दरअसल बास्तानार में पदस्थ शिक्षक भागीरथी ओगरे संक्रमित हो गए थे।

जिसके बाद उन्हें डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया। इस दौरान उनकी पत्नी संतोषी ओगरे भी संक्रमित पाई गई थी, मगर पत्नी को घर पर ही आइसोलेट किया गया था। गौरतलब, शिक्षक की 5 साल की बच्ची और 3 साल के थे। जानकारी के मुताबिक शनिवार की रात शिक्षक की मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई।

वहीं जब रविवार की सुबह जब शिक्षक की बच्ची उठी तो उसने अपनी माँ को उठाने की कोशिश की लेकिन माँ ने कोई जवाब नहीं दिया। बच्ची ने मकान मालिक को जाकर बताया कि माँ कुछ बोल नहीं रही, तब जाकर पता चला कि माँ की भी मौत हो चुकी है।

मासूम बच्चे पेड़ के नीचे घंटों खड़े रहे लेकिन संक्रमण के डर के चलते मदद के लिए कोई उनके पास नहीं आया। पिता के बाद घर पर माँ की मौत से अनजान मासूम बच्चे घर के सामने पेड़ के नीचे बैठे रहे लेकिन पड़ोसी चाह कर भी मदद करने के लिए अपना कदम आगे नहीं बढ़ा पाए।

पड़ोसियों ने बताया कि सुबह एक डॉक्टर पहुंचे थे, जिन्होंने संतोषी ओगरे की जाँच कर उन्हें मृत घोषित कर दिया था लेकिन उनके संपर्क में रहे बच्चों की स्थिति जानने के लिए घंटों जांच टीम नहीं पहुंची थी। इस वजह से कोई भी बच्चों के पास नहीं जा रहा था। तभी कुछ देर बाद कोड़ेनार थाना प्रभारी संतोष सिंह अपनी टीम के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने बच्चों के खाने की व्यवस्था की।

बड़े अफसोस की बात है ना कि हम सुन और समझ सब सकते हैं लेकिन फिर भी मदद के लिए अपने कदम आगे नहीं बढ़ा सकते। क्या सच में संक्रमण का खौफ इतना बढ़ चुका है कि उसके आगे लोगों को दो मासूमों की नम आंखें और उनके अनाथ होने का दर्द भी दिखाई नहीं दिया। भले ही संक्रमण से उनके माता-पिता की मौत हो गई हो लेकिन इस संक्रमण ने तो इंसानियत का भी गला घोंट दिया है।

Avinash Kumar Singh

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