वैसे तो हरियाणा राज्य हमेशा से ही मंत्रियों और नेताओं के राजनीति से जुड़े तत्व से परिपूर्ण रहा है। यहां हर नेता का एक अपना ही राजनीतिक व्यवस्था का अलग ही अंदाज उभर कर देखने को मिला था। मगर आज हम आपको एक ऐसे नेता के बारे में बताएंगे जिन्हें 53 वर्ष पूर्व सीएम के तत्कालीन दावेदारों को पछाड़कर उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया था।
हरियाणा के निर्माता जैसा उपनाम पाने वाले चौधरी बंसीलाल ने आज ही की तारीख यानी 22 मई, 1968 को नाटकीय घटनाक्रम के बीच पहली बार हरियाणा की कमान संभाली थी। अपनी पहली पारी में उन्होंने कई बड़ी उपलब्धियां अपने नाम की थी। बंसीलाल के कार्यकाल में हरियाणा वर्ष 1970 में ही देश का ऐसा पहला राज्य बन गया था, जिसके हर गांव में बिजली पहुंच गई थी। पश्चिमी व दक्षिणी हरियाणा में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करने में भी बंसी की अहम भूमिका रही थी। जेएलएन जैसी नहरी प्रणाली उन्हीं की देन है।
चौधरी बंसीलाल के सत्ता में आने से पूर्व हरियाणा में राष्ट्रपति शासन था। राष्ट्रपति शासन से पूर्व राव बिरेंद्र सिंह ने 224 दिन कमान संभाली थी। वर्ष 1968 में हुए मध्यावधि चुनाव के बाद कांग्रेस बहुमत में आई। इंदिरा गांधी ने तब गुलजारीलाल नंदा को हरियाणा का मामला देखने के लिए अधिकृत कर दिया था। दक्षिण हरियाणा विकास मंच के अध्यक्ष बाबू जगजीत सिंह व महासचिव प्रो. रणबीर सिंह के अनुसार तब चौ. रणबीर सिंह हुड्डा व पंडित भगवत दयाल शर्मा सीएम पद के प्रमुख दावेदार थे, लेकिन चौधरी देवीलाल जानते थे कि नंदा, चौधरी बंसीलाल से व्यक्तिगत लगाव रखते हैं।
चौधरी देवीलाल ने साथ देने का वादा करके बंसीलाल को नंदा के पास भेज दिया। नंदा के प्रयास से उनकी लाटरी खुल गई। उन्हें कमजोर मानकर सीएम पद के अन्य दावेदारों ने यह सोचकर साथ दे दिया कि बंसीलाल उनके कहे अनुसार राज करेंगे, मगर बंसी ने जल्दी ही अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी। उन्हें हटाने के प्रयास भी हुए, मगर राजनीति के खिलाड़ी बन चुके बंसी जल्दी ही आयाराम-गयाराम के खेल पर अंकुश लगाने में कामयाब हो गए।
पहली पारी में 7 वर्ष 192 दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद चौ. बंसीलाल ने 1977 में लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर आपातकाल के बाद हुए इस चुनाव में मात खा गए। लोगों ने बंसीलाल को इंदिरा व संजय गांधी की तरह आपातकाल का खलनायक मानकर अपना गुस्सा निकाला। बंसीलाल भिवानी लोकसभा सीट से लोकदल उम्मीदवार चंद्रावती के हाथों हार गए। ऐसा तब हुआ जब उन्होंने गृह जिले भिवानी में विकास के बड़े काम किए थे।
कहते हैं सड़कों के मोड़ और मास्टरों की मरोड़ बंसीलाल ने निकाली। यह किस्सा तब चला था, जब उन्होंने अध्यापकों के दूर-दूर तबादले कर दिए थे। अध्यापकों ने आंदोलन भी किया, मगर बंसी नहीं झुके। चुनावों में बंसीलाल को मास्टरों का गुस्सा झेलना पड़ा।
26 अगस्त 1927 को भिवानी में जन्में बंसीलाल राजनीति में आने से पहले वकालत करते थे। वह भिवानी बार एसोसिएशन के प्रधान भी रहे।
लिफ्ट इरीगेशन (उठान परियोजना) और टीबों पर फव्वारा सिंचाई का तोहफा देने की पहल बंसीलाल ने ही की थी।
हर गांव में बिजली की तरह हर गांव तक सड़क पहुंचाने का श्रेय भी बंसीलाल को जाता है। हालांकि इंदिरा गांधी ने पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आए हरियाणा को विशेष आर्थिक सहयोग दिया था।
प्रथम कार्यकाल: 22 मई 1968 से 30 नवंबर 1975 (कांग्रेस)
द्वितीय कार्यकाल: 5 जुलाई 1985 से 19 जून 1987 (कांग्रेस)
तृतीय कार्यकाल: 11 मई 1996 से 23 जुलाई 1999 (एचवीपी)