एक सोच ने इनकी पलट दी काया, इस चीज से बनाते हैं अनोखे फर्नीचर कमाई हो रही है लाखों में

    0
    183

    आपकी सोच आपकी ज़िंदगी कभी भी बदल सकती है। आप जो भी हैं सिर्फ अपनी सोच के दम पर हैं। पुणे में रहने वाले 29 वर्षीय प्रदीप जाधव, साल 2018 से अपना फर्नीचर और होम डेकॉर का बिज़नेस चला रहे हैं। उनके स्टार्टअप का नाम ‘Gigantiques’ है, जिसके अंतर्गत वह इंडस्ट्रियल वेस्ट को अपसायकल करके, फर्नीचर और होम डेकॉर का सामान बनाते हैं। कपड़ा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि इंडस्ट्री से निकलने वाले कचरे को ‘इंडस्ट्रियल वेस्ट’ कहते हैं।

    आज उनके द्वारा बनाये गए इस फर्नीचर की डिमांड काफी ज़्यादा बढ़ गयी है। इंसान को सफलता के लिए कड़ी मेहनत के साथ सबकुछ हासिल करने की राह पर निकलना पड़ता है। प्रदीप अपने बिज़नेस के लिए पुराने और बेकार टायर, बैरल और कार या बाइक के कल-पुर्जों का इस्तेमाल करते हैं।

    एक सोच ने इनकी पलट दी काया, इस चीज से बनाते हैं अनोखे फर्नीचर कमाई हो रही है लाखों में

    इनके आइडिया ने इनका लाभ तो किया है साथ में दूसरों को भी फायदा हो रहा है। अपने बिज़नेस के जरिए, प्रदीप न सिर्फ ग्राहकों को अच्छा और टिकाऊ फर्नीचर दे रहे हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी काम कर रहे हैं। धुले जिले के दलवाडे गाँव में पले-बढ़े प्रदीप जाधव, एक किसान परिवार से हैं। उनकी दसवीं तक की पढ़ाई, सरकारी स्कूल से हुई और फिर उन्होंने ITI कोर्स में दाखिला लिया। ITI करने के बाद, उन्होंने डिप्लोमा कोर्स भी किया।

    एक सोच ने इनकी पलट दी काया, इस चीज से बनाते हैं अनोखे फर्नीचर कमाई हो रही है लाखों में

    कड़ी मेहनत के दम पर आप सबकुछ हासिल कर सकते हैं। आपको सच्ची लगन और निष्ठा के साथ लक्ष्य तक पहुंचना होता है। प्रदीप ने भी यही किया।प्रदीप कहते हैं कि डिप्लोमा करने के बाद, उन्हें एक कंपनी में नौकरी मिल गयी। नौकरी के साथ-साथ, वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के लिए कॉलेज में दाखिला ले लिया। साल 2016 में अपनी डिग्री पूरी करने के बाद, वह पुणे में एक मल्टीनैशनल कंपनी के साथ काम करने लगे।

    एक सोच ने इनकी पलट दी काया, इस चीज से बनाते हैं अनोखे फर्नीचर कमाई हो रही है लाखों में

    कोई भी इंसान आपसे बेहतर नहीं है। जो आप कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता। इसी सोच के साथ आपको आगे बढ़ना चाहिए। प्रदीप बताते हैं कि उनका बचपन से ही अपना खुद का कोई काम करने का मन था, डिप्लोमा की पढ़ाई के साथ-साथ, बुक स्टोर भी खोला। किताबों का काम कुछ समय तक अच्छा चला, लेकिन फिर इसमें घाटा होने लगा, तो यह बंद करना पड़ा। अब नई सोच ने नए मुकाम तक पंहुचा दिया है।