इंडियन नेशनल लोकदल के प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला एक बार फिर तीसरे मोर्चें के गठन के प्रयास में लग गए है। इसके लिए सरदार प्रकाश बादल, शरद पवार, ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव आदि नेताओं से वह भेंट करेंगे।
चौटाला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और बसपा सुप्रीमो मायावती को भी तीसरे मोर्चें से जोड़ना चाहते है।
चौटाला भले ही तीसरे मोर्चे की गठन की बात कह रहे हों, लेकिन उस मोर्चे का हरियाणा में कोई प्रभाव पड़ेगा, ऐसी संभावनाएं दूर-दूर तक नहीं दिखतीं। कारण यह कि जिन दलों को एक छतरी के नीचे लाने की बात चौटाला कह रहे हैं, वे सब क्षेत्रीय दल हैं और अपने-अपने प्रदेशों तक ही सीमित हैं।
चौटाला के अपने दल का हरियाणा में आधार अवश्य है, लेकिन उनको अन्य किसी दल को साथ लेने से कोई लाभ नहीं होगा, वह जो कुछ भी हरियाणा में हासिल करेंगे अपने जनाधार से ही कर पाएंगे।
यह भी स्मरण रहे कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सरदार प्रकाश सिंह बादल के शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से पहले भी चौटाला के दल इनेलो का गठबंधन होता रहा है। इनेलो अपने प्रभाव क्षेत्र वाली एक दो सीटें शिअद को देकर बादल को अनुगृहीत करता था।
इसका बड़ा कारण बादल और चौटाला परिवारों में मित्रता थी। स्पष्ट है कि चौटाला जिस तरह से शिअद को अनुगृहीत करते थे, उस तरह से बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी को तो कर नहीं सकते। यदि ऐसा करेंगे तो अपने लिए क्या रखेंगे।
संभव है कि एक दो सीट मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी मांग ले, क्योंकि कभी उसके भी एक विधायक होते थे। बसपा से इनेलो का समझौता होता रहा है और टूटता रहा है। दोनों मिलकर भी कोई कमाल नहीं दिखा पाए। फिर बड़ा प्रश्न यह भी है कि कांग्रेस तीसरे मोर्चे में शामिल होगी या नहीं।
होगी तो निश्चित रूप से वह हरियाणा में मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी करेगी। यह चौटाला को स्वीकार नहीं होगा। यदि कांग्रेस नहीं शामिल होगी तो हरियाणा में पुराने दल और पुराने समीकरण ही रहेंगे। इसलिए तीसरे मोर्चे के गठन से हरियाणा की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला।