कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानो के आगे आखिरकार मोदी सरकार को झुकना ही पड़ा। प्रधानमंत्री मोदी ने किसानो के आगे हार मान ली और तीनों कानून वापस ले ही लिए। पिछले 7 साल में यह शायद पहला मौका है जब प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने कोई कानून वापस लिया या अपना फैसला पलटा। इससे पहले भी किसानों ने 3 मौकों पर दिल्ली में बैठे हुक्मरानों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन यह आंदोलन इन तीनों में से सबसे लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन रहा। किसानों ने हार नहीं मानी और सरकार को झुकने पर मजबूर किया।
1907 में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह की ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ लहर के अलावा सर छोटूराम और महेंद्र सिंह टिकैत ने भी तत्कालीन सरकारों को खेती से जुड़े कानून वापस लेने को मजबूर कर दिया था। आइए जानते हैं, भारत में किसानों ने कब-कब सरकारों को झुकाया।
1. अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हुए शहीद-ए-आजम के चाचा
वर्ष 1907 में ब्रिटिश सरकार तीन खेती कानून लेकर आई। इन कानूनों के अनुसार किसानों की जमीन जब्त हो सकती थी। तब किसानों ने पंजाब औपनिवेशीकरण कानून, बढ़े हुए राजस्व और पानी का रेट बढ़ाने का विरोध किया। शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह ने सभी किसानों को एकत्रित किया।
21 अप्रैल 1907 को अजीत सिंह ने रावलपिंडी की बड़ी मीटिंग कर भाषण दिया। अंग्रेज सरकार ने उनके भाषण को बगावत माना और दफा 124ए के तहत मुकदमा दर्ज किया। पूरे पंजाब में ऐसी कुल 33 बैठकें हुई जिनमें से 19 में अजीत सिंह मुख्य वक्ता थे। पंजाब के वरिष्ठ कांग्रेस नेता लाला लाजपत राय भी इन बैठकों का हिस्सा थे।
ब्रिटिश अफसर लाई किचनर को भय था कि आंदोलन से सेना और पुलिस में भर्ती किसानों के बेटे बगावत कर सकते हैं। पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर को भी यही आशंका थी। इसके बाद अंग्रेज सरकार ने झुकते हुए मई 1907 में कानून रद्द कर दिए। साथ ही लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को 6 महीने बर्मा की जेल में डाल दिया। इसके बाद 11 नवंबर 1907 को दोनों की रिहाई हुई।
2. किसानों के मसीहा बने सर छोटूराम
सर छोटूराम को सन् 1937 में किसानों व मजदूरों के लिए किए गए संघर्ष की वजह से ‘नाइट’ की उपाधि दी गई । उन्हें किसानों का मसीहा भी कहा गया।
यह कानून 2 सितंबर 1938 को प्रभावी हुआ था। इस एक्ट के अनुसार कोई भी साहूकार बिना पंजीकरण के किसी को कर्ज नहीं दे पाएगा। साथ ही किसानों पर अदालत में मुकदमा नहीं कर पाएगा।
9 सितंबर 1938 को यह कानून प्रभावी साबित हुआ। क्योंकि इस अधिनियम के तहत जो जमीनें 8 जून 1901 के बाद कुर्की से बेची गई और 37 साल से गिरवी चली आ रही थीं, वो सारी जमीनें किसानों को वापस दिलवाई गईं।
5 मई 1939 से कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम को लागू किया गया। इसके तहत नोटिफाइड एरिया में मार्केट कमेटियां बनाई गई। एक रिपोर्ट के अनुसार किसानों को फसल का मूल्य केवल 60 प्रतिशत ही मिल पाता था। 40 प्रतिशत मूल्य आढ़ती, तुलाई, रोलाई, मुनीमी, पल्लेदारी औ अन्य में कट जाता था। इस एक्ट के तहत किसानों को फसल का उचित मूल्य दिलवाने का नियम बना।
8 अप्रैल 1935 में किसानों व मजदूरों को सूदखोरों से मुक्त कराने के लिए इस ऐतिहासिक अधिनियम को बनाया गया। इस कानून के तहत अगर कर्ज का दोगुना पैसा दिया जा चुका है तो ऋणी ऋण मुक्त समझा जाएगा। इसके तहत कर्ज माफी बोर्ड बनाए गए। दाम दुप्पटा का नियम लागू किया। इसके अनुसार दुधारू पशु, बछड़ा, ऊंट, रेहड़ा, घेर, गितवाड़ आदि आजीविका के साधनों को नीलाम नहीं किया जा सकता।
3. सरकार के पास जाने में नहीं बल्कि अपने पास बुलाने में रखते थे यकीन
भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत ने 32 साल पहले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को ठप कर दिया था। उस समय केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी जिन्हें टिकैत ने झुकने के लिए मजबूर कर दिया था। किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाने वाले टिकैत के एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे। किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास जाने में नहीं बल्कि सरकारों को अपने पास बुलाने में यकीन रखते थे।
महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में किसानों के कई आंदोलन हुए लेकिन एक आंदोलन ऐसा था, जिसे देखकर तत्कालीन केंद्र सरकार भी बौखला गई थी। 25 अक्टूबर, 1988 को टिकैत ने नई दिल्ली के मशहूर बोट क्लब में बड़ी किसान पंचायत की। 14 राज्यों के किसानों ने इस बैठक में हिस्सा लिया।
तकरीबन पांच लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया। सात दिन तक चले इस किसान आंदोलन के आगे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को झुकना ही पड़ा। इसके बाद ही टिकैत ने अपना धरना खत्म किया।
4. दिल्ली के बॉर्डर पर किया किसानों ने कब्जा
साल 2020 में लोकसभा में तीन खेती कानून पास होने बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के खिलाफ किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। इस आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई थी और धीरे-धीरे यह हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों में फैल गया।
किसानों ने दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर कब्जा जमा लिया था। पिछले एक साल से किसान टेंट गाड़कर सड़कों पर बैठे हैं। यह किसानों का सबसे लंबा चलने वाला आंदोलन रहा।
मौजूदा किसान आंदोलन को 26 नवंबर यानी आज एक साल पूरा हो गया है। इससे हफ्तेभर पहले 19 नवंबर की सुबह गुरु नानकदेव के प्रकाश पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया और इसमें किसानों की मुख्य मांग मानते हुए अपनी सरकार के तीनों खेती कानून वापस लेने की घोषणा कर दी।
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