जुगाड़ से पा लिया था काम लेकिन योगी ने बैरंग लौटाया

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आज के समय में पीआर कंपनियों के जरिये अपने ब्रांड आदि का प्रचार कराना ट्रेंड में है। इस पीआर की चकाचौंध से केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्री भी अछूते नहीं हैं। लेकिन उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली की एक पीआर कंपनी को प्रशासन से हरी झंडी मिलने के बाद भी लोक भवन से चलता कर दिया।

ख़बर है कि योगी को पीआर कंपनियां का सहारा लेना खास पसंद नहीं है। उन्हें यह सरकारी फंड की फ़िज़ूल ख़र्ची लगता है। उनका मानना है कि प्रचार प्रसार में पैसे व्यर्थ करने की जगह उन पैसों को जनता की सेवा में व्यय करना चाहिए। दिल्ली की एक पीआर कंपनी पिछले 1 साल से उत्तरप्रदेश सरकार के लिए प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही थी।

जुगाड़ से पा लिया था काम लेकिन योगी ने बैरंग लौटाया

इस कंपनी के कार्य से न तो शासन ख़ुश था और न ही प्रशासन। वह इस कंपनी की सेवाएं बीच ही में ख़त्म करना चाहते थे किंतु तमाम कारणों से यह कंपनी अपनी जगह बचाये रखने में सफल रही।

अभी टेंडर की अवधि समाप्त होने पर फिर से टेंडर निकाला गया और वापस से दिल्ली की इसी कंपनी को फिर से टेंडर मिला। इस कंपनी को काम मिलने की काफी चर्चा इसलिए भी हुई क्योंकि पिछले एक साल से शिकायत और नोटिस झेलने वाली इस कंपनी को फिर से काम मिलना हैरान करने वाला था।

नए सिरे से काम शुरू करने के लिए कागजी प्रक्रिया जारी की थी कि मुख्यमंत्री ने पीआर की फाइल के सामने लाल झंडा लगा दिया।

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दिल्ली तक में सराहना:

मुख्यमंत्री के इस कदम की राज्य के प्रशासनिक गलियारों से लेकर दिल्ली तक चर्चा है। कोविड-19 महामारी से उपजे आर्थिक संकट के बीच भी शासन – प्रशासन और मंत्रियों का मीडिया में प्रचार के लिए प्राइवेट कंपनियों का सहारा लेना जारी है, और ऐसे में योगी आदित्यनाथ द्वारा पीआर को साफ मना करने की सराहना की जा रही है। कहा जा रहा है कि योगी ने पीआर पर खर्च का ट्रेंड तोड़ा है।

केंद्र सरकार से जुड़ा काम आसानी से मिलता है इस कम्पनी को : जनवरी 2019 से इस कम्पनी ने उत्तरप्रदेश में सेवाएं शुरू की थी। उत्तर प्रदेश सरकार और पीआर कंपनी के बीच ढाई करोड़ रुपए से अधिक की डील हुई थी। इस पीआर कंपनी के केंद्र शासन के अधिकारियों से अच्छे संबंध बताए जाते हैं जिनकी बदौलत उसे केंद्र सरकार के महकमों का काम मिलता रहता है। कंपनी केंद्र सरकार के कुछ मंत्रालयों- विभागों तो गुपचुप तरीके से काम करती है लेकिन पुष्ट जानकारी के अनुसार गुजरात प्रदेश सरकार का प्रचार भी इसके ही पास है।

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बड़ा होता है प्रचार का खेल:

पीआर कंपनियां शासन – प्रशासन को मीडिया में रसूख बनाने का प्रलोभन देकर तगड़े पैसे कमाती हैं। कागजों में प्रशासन के नाम पर प्रचार का काम दिखाया जाता है पर सच यह है कि सरकारी फंड से नेताओं और मंत्रियों का व्यक्तिगत प्रचार होता है। केंद्र सरकार के कई बड़े मंत्री पीआर की सेवाओं के जरिए मीडिया में अपना काम अच्छा दिखाने की कोशिश करते हैं