आज करगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे, जानिए क्यों मनाया जाता है करगिल विजय दिवस

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हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है। इस दिन करगिल युद्ध में शहादत देने वाले 527 सैनिकों को याद किया जाता है। आपको बता दें कि इस साल भारत 21वां करगिल युद्ध मनाएगा। इस युद्ध में सैकड़ों भारतीय सैनिक पाकिस्तान के साथ लड़ाई में शहीद हुए थे।

साल 1999 में मई से जुलाई तक चलने वाला यह युद्ध जम्मू-कश्मीर के करगिल सेक्टर में नियंत्रण रेखा (LOC) पर हुआ था। अक्टूबर 1998 में मुशर्रफ ने कारगिल प्लान को मंजूरी दी थी। पाक को लगा होगा कि ऊंची चोटी पर कब्जे के बाद ये क्षेत्र हमेशा के लिए उनका हो जाएगा लेकिन उन्हें इंडियन आर्मी के अदम्य साहस का अंदाजा नहीं था।

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युद्ध सरकारों द्वारा नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र द्वारा लड़े जाते हैं। सरकारें आती हैं और जाती हैं; लेकिन जो लोग देश के लिए जीने या मरने का सोचते हैं, वे अमर हैं। सैनिक न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए और सुरक्षित भविष्य के लिए अपने जीवन का बलिदान देते हैं

करगिल विजय दिवस

सैनिक जीवन और मृत्यु के बीच अंतर नहीं करते हैं। उनके लिए, कर्तव्य सर्वोच्च है। राष्ट्र की ताकत से जुड़े इन सैनिकों का जीवन सरकारों के कार्यकाल से जुड़ा नहीं है। कोई भी शासक और प्रशासक हो सकता है, लेकिन हर भारतीय को अपने बहादुर सैनिकों पर गर्व करने का अधिकार है

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जानिए क्यों हुआ था करगिल युद्ध

लाहौर समझौते को तोड़कर पाकिस्तान ने किया था कारगिल पर हमला

पाकिस्तान ने लाहौर समझौते के तीन महीने बाद ही भारत के खिलाफ धोखेबाजी से हमला कर दिया था लेकिन भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तान की कुत्सित चाल को नाकाम कर दिया। इसके बाद भी पाकिस्तान अपने रवैए से बाज नहीं आ रहा है।

60 से भी अधिक दिनों तक चला था युद्ध

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कारगिल युद्ध 60 से भी अधिक दिनों के लिए लड़ा गया था, यह 26 जुलाई को खत्म हो गया और परिणामस्वरूप दोनों पक्षों, भारत और पाकिस्तान के जीवन में नुकसान के बाद, हमें कारगिल की संपत्ति फिर से हासिल हुई।

पाकिस्तान के 3 हजार से ज्यादा सैनिक मारे गए थे

कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के 3 हजार से ज्यादा सैनिक मारे गए थे। कारगिल युद्ध से पहले पाकिस्तानी जनरल परवेज मुशर्रफ ने भारतीय सीमा (LOC) में आकर रात गुजारी थी।

ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों की हुई थी तैनाती

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बता दे की, 1998-99 में सर्दियों के दौरान पाकिस्तान ने गुपचुप तरीके से सियाचीन ग्लेशियर की फ़तेह के इरादे से अपनी फौजें भेजनी शुरू कर दी। जब भारत द्वारा इसके बारे में पूछा गया तो पाकिस्तान ने कहा की यह उनकी फ़ौज नहीं बल्कि मुजाहिद्दीन हैं।

इसके साथ ही पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर कश्मीर के मुद्दे को सुलझाना चाहता था। भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा।

1999 में पाकिस्तानी फौज और आतंकी नियंत्रण रेखा के भीतर घुस आए थे

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1999 के मई महीने के शुरू में तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के कारगिल जिले में बड़ी संख्या में पाकिस्तानी फौज और उनके आतंकी नियंत्रण रेखा (Line Of Control) को पार कर भारतीय सीमा में घुस आए और सामरिक महत्व के कई अहम स्थानों टाइगर हिल्स और द्रास सेक्टर की चोटियाें पर कब्जा जमा लिया।

इस लिए दिया गया करगिल विजय दिवस का नाम

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ऑपरेशन विजय की सफलता के नाम पर कारगिल विजय दिवस का नाम दिया गया। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने सफलतापूर्वक प्रमुख चौकी की कमान संभाली, जो पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा भारत से छीन ली गयी थी।

वीर जवानों के बलिदान से करगिल विजय दिवस की लिखी गई है कहानी

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कारगिल युद्ध में लगभग 550 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1400 से ज्यादा घायल हुए थे। अधिकांश शहीद होने वाले जवान अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।

करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों को बुरी तरह खदेड़ने वाले भारत मां के 10 वीर सपूतों में कैप्टन विक्रम बतरा का नाम भी शामिल है। इन्होंने ही कारगिल के प्वॉइंट 4875 पर तिरंगा फहराते हुए ‘दिल मांगे मोर’ कहा था। कैप्टन उसी जगह पर वीर गति को प्राप्त हुए।

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वह 13वीं जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में थे। उन्होंने तोलोलिंग पर पाकिस्तानियों द्वारा बनाए गए बंकरों पर न केवल कब्जा किया था, बल्कि अपने सैनिकों को बचाने के लिए सात जुलाई 1999 को पाक सैनिकों से सीधे जा भिड़े थे। उन्होंने इसके बाद वहां तिरंगा फहराया था, जिसकी वजह से आज भी वह चोटी बतरा टॉप नाम से मशहूर है

ऊँची हिमालय की ठंडी पहाडीयों में कम जरूरतों के साथ लड़े भारतीय सैनिक

जनरल वेद प्रकाश मलिक ने कहा था कि कारगिल युद्ध में हमारे जवानों के पास ऊंची पहाड़ियों पर लड़ने के लिए तकनीकी रूप से बेहतर हथियार नहीं थे। इसके अलावा बेहद ऊंचाई पर लड़ रहे जवानों के सामने ठंड से बचने के लिए बेहतर कपड़े और जैकेट नहीं थे।

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हालांकि, उन्होंने बताया था कि 1998 के दौरान परणाणु परीक्षण के बाद भारत पर कई तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगा दिए गए थे। जिसकी बदौलत अत्याधुनिक सैन्य साजो सामान भारत नहीं खरीद पाया था। मलिक ने तो यह भी कहा था कि भारतीय सेना के सामने राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को मानने की मजबूरी थी। लिहाजा, सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) को क्रॉस नहीं किया था |

भारतीय वीर सपूतों की वीर गाथा

पाकिस्तानी सैनिकों ने शुरू में नियंत्रण रेखा पार की जिसे लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल कहा जाता है और भारत नियंत्रित क्षेत्र में प्रवेश किया। बाद में स्थानीय चरवाहों ने लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल पार करने वाले संदिग्ध लोगों के बारे में सेना को सूचित किया।

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नज़र रखने के लिए, भारतीय सेना ने अतिरिक्त सैनिकों को लद्दाख से कारगिल क्षेत्र में भेजा और उन्हें पता चला कि पाकिस्तानी सेना एलओसी पार कर भारत के नियंत्रण वाले क्षेत्र में घुस गई है। जमीन पर दावा वापस पाने के लिए दोनों सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी। बाद में भारतीय वायु सेना घाटी से सभी घुसपैठियों को साफ करते हुए युद्ध में शामिल हुई।

करगिल विजय दिवस की शुरुआत

भारतीय वायुसेना ने पाक के विरूद्ध तब मिग-27 व मिग-29 लड़ाकू विमानों का प्रयोग किया गया लेकिन बोफोर्स तोप के गोलों ने पाक को हराने में बहुत अहम किरदार निभाई थी।

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13 जून को इंडियन आर्मी ने द्रास सेक्टर में तोलोलिंग पोस्ट पर तिरंगा फहराया था। टाइगर हिल पर हिंदुस्तान की बढ़त 24 जून को प्रारम्भ हुई थी, जब वायुसेना ने मोर्चा संभाला व दो मिराज 2000 एयरक्राफ्ट्स को भेजा। इन लड़ाकू विमानों ने टाइगर हिल पर जमे बैठे पाकिस्तान सैनिकों पर लेजर गाइडेड बमों के जरिए हमला किया था।

आखिरकार 26 जुलाई को हिंदुस्तान ने आखिरी चोटी पर भी अतिक्रमण किया व ऑपरेशन विजय पूरा हुआ। कारगिल की विजय गाथा और हमारे वीर सपूतों पर सारे देश को गर्व है।

Written by- Prashant K Sonni