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मजबूर होकर मजदूरी करता है परिवार, तब जाकर नसीब होती है एक वक्त की रोटी : मैं हूँ फरीदाबाद

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नमस्कार! मैं हूँ फरीदाबाद और आज मैं आप सबको एक परिवार की कहानी सुनाने आया हूँ। ये कहानी सच्ची है और इस कहानी की नायिका है फूलन। फूलन एक ध्याड़ी मजदूर है जो व्यवसाय की आस में अपने परिवार के साथ झारखण्ड से निकलकर यहाँ फरीदाबाद चली आईं।

उनके परिवार में पांच लोग हैं जो एक टूटी हुई झुग्गी में किराए पर रहते हैं। झुग्गी की हालत दयनीय है और उससे ज्यादा बुरी हालत में अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं फूलन। उसका पति भी ध्याड़ी मजदूर है जो पाई पाई के लिए तरसता है।

मजबूर होकर मजदूरी करता है परिवार, तब जाकर नसीब होती है एक वक्त की रोटी : मैं हूँ फरीदाबाद
Foolan Devi

तीन बच्चे हैं जो स्कूल जाने की उम्र में चाय की टापरी पर काम करती हैं। रोज खुदको घिसते हैं इस आस में कि उनके परिवार के पास एक दिन के राशन का इंतजाम हो जाए। जब फूलन से कोई बात करता है तब उसकी आँखे छलक उठती हैं। उसकी बहुत छोटी छोटी खाव्हिशें हैं जिन्हे पूरा करने के लिए उसे मुनीमों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है।

फिर जैसे ही महामारी की गाझ गिरी तो मानो फूलन और उसके परिवार के ऊपर पहाड़ टूट पड़ा हो। न पैसे थे, न राशन पाई पाई के लिए मोहताज हो चुकी फूलन के पास कोई रास्ता ही नहीं बच पाया।

मजबूर होकर मजदूरी करता है परिवार, तब जाकर नसीब होती है एक वक्त की रोटी : मैं हूँ फरीदाबाद

अंत में फूलन ने अपनी एकलौती चांदी की अंगूठी को बेच कर अपना गुजारा किया। तरस नहीं आता फूलन की कहानी को सुनकर। अरे मैं तो उसे रोज देखता हूँ जब वो चौराहों पर काम की तलाश में अपना पूरा दिन गुजार देती है।

जानते हैं उसके जैसी न जाने कितनी और फूलन हैं जो वहीं उस चौराहे पर काम की आस में अपने शरीर को चिलमिलाती धुप में तपाती हैं। अपनी गठरी में एक प्याज और रोटी बांधकर रोज एक मजदूर घर से निकलता है।

मजबूर होकर मजदूरी करता है परिवार, तब जाकर नसीब होती है एक वक्त की रोटी : मैं हूँ फरीदाबाद

व्यवसाय की आस में, रोजगार की तलाश में पर हर रोज उसकी उमीदें पत्थरों से टकराकर टूट जाती हैं। मेरे निजाम को यह पैगाम पहुंचा दो कि इस शहर में हर रोज न जाने कितने लोग भूके पेट सोते हैं। उनके बारे में सोचने का वक्त आ गया है।

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