किसी भी देश में या प्रदेश में स्वास्थ्य सेवा का होना काफी ज़रूरी होता है। स्वास्थ्य सेवा अच्छी होगी तभी वो प्रदेश बेहतरीन होगा। हरियाणा को बने हुए 50 वर्ष से अधिक हो गए हैं लेकिन फिर भी यहां चिकित्सकों की कमी है। महामारी के बाद स्वास्थ्य हर किसी की प्राथमिकता में है। प्रदेश में भी हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस किया गया, लेकिन डॉक्टरों की बड़ी कमी है।
कोई भी जगह तभी स्वस्थ रहेगी जब डॉक्टरों की कमी नहीं होगी। इस समय प्रदेश में सरकारी अस्पताल में 3250 पदों में से करीब 3 हजार डॉक्टर काम कर रहे हैं। प्राइवेट समेत सूबे में 14517 डॉक्टर पंजीकृत हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस के अनुसार एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर जरूरी है।
स्वास्थ्य विभाग लोगों को बड़ी – बड़ी सुविधाएं देने की बात करता है लेकिन डॉक्टर ही नहीं होंगे तो सुविधा का लाभ देगा कौन? प्रदेश को 28 हजार 600 डॉक्टरों की जरूरत है। महामारी काल में जिला अस्पतालों में वेंटिलेटर पहुंचाए गए, लेकिन चलाने वाला नहीं है। सब सेंटर से लेकर सीएचसी-पीएचसी व जिला अस्पतालों की संख्या भी देखें तो 6800 गांवों में से आधे गांवों में स्वास्थ्य सेवा मिल पाती है। बाकी गांवों को क्लीनिकों का सहारा लेना पड़ रहा है।
काफी सरकारें प्रदेश में आई हैं लेकिन कोई भी आमजनता की इस समस्या को दूर नहीं कर पाई है। प्रदेश में हार्ट, न्यूरो, कैंसर और किडनी-लीवर ट्रांसप्लांट जैसी बीमारियों के इलाज के लिए मरीजों को दिल्ली, चंडीगढ़, चेन्नई जैसे शहरों की ओर रुख करना पड़ता है। इनके लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टर अभी हमारे पास नहीं हैं।
प्रदेश में चिकित्सकों की कमी एक गंभीर मुद्दा है। प्रदेशवासियों यहां सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। सरकारी अस्पतालों में 3250 पदों में 3098 पद भरे हैं। इनमें करीब 700 स्पेशलिस्ट हैं। यानी 40857 की आबादी पर एक सर्जन है।